कुव्यवस्था के सामने सरेंडर करना डीएमसीएच अधीक्षक की लाचारगी या निक्कमापन!
दरभंगा: डीएमसीएच में कुव्यवस्था एवं आवाज उठाने पर मरीज के परिजनों के साथ दुर्व्यवहार कोई नयी बात नही है। एक तरफ सुपर स्पेशियलिटी अस्तपाल की खड़ी बड़ी किंतु अबतक बेकाम बिल्डिंग, वहीं दूसरी तरफ एम्स आने के दावे आदि तो खूब किये जाते हैं। पर कार्य संस्कृति में सुधार एवं वर्तमान उपलब्ध सुविधाओं को मरीजों तक पहुंचाने की दिशा में कोई ठोस कार्य नही किये जाते हैं। और तो और, डॉक्टरों की लापरवाही एवं कुव्यवस्था से परेशान मरीज यदि अस्पताल अधीक्षक से गुहार लगाये या शिकायत करे, तो अस्पताल अधीक्षक के निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाने में डॉक्टर या अस्पताल कर्मी तनिक भी गुरेज नही करते। फिर भी मौन होकर अधीक्षक का कारवाई से भागना, एक बड़ा सवाल उठाता है। गुरुवार को पुनः एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसने एकबार फिर बड़ा सवाल उठाया है कि आखिरकार अधीक्षक का कुव्यवस्था के सामने भागना उनकी लाचारगी है या निक्कमेपन का परिचायक!
दरअसल, सिंहवाड़ा निवासी चाइल्डलाइन कार्यकर्ता सह मानवाधिकार कार्यकर्ता मनोहर झा के पुत्र को गुरुवार घर के सामने एक मोटरसाइकिल से धक्का लग गया और वह घायल हो गया। उन्होंने बच्चे का इलाज सिंहवाड़ा पीएचसी करवाया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद बेहतर उपचार केलिए डीएमसीएच भेज दिया गया। यहां आने के बाद सबसे पहले उनके पर्चे पर पुलिस केस लिख दिया गया, जबकि उन्होंने पुलिस केस की कोई बात नही की। उसके बाद दवा एक पर्ची दी गयी। कुछ दवा वहां दिया गया, जबकि अन्य बाहर से लाने को कहा गया। उसके बाद एक्सरे एवं टेस्ट आदि करवाने को कहा गया। सिंहवाड़ा से जो पट्टी बांधा गया था, उसे भी खोल दिया गया। हाथ मे प्लास्टर की बात कही गयी। पर करीब चार घण्टे तक बैठे रहने और इधर उधर भागने के बाद भी ढंग से इलाज नही किया गया। वहां मौजूद एक गार्ड के माध्यम से उन्होंने डीएमसीएच अधीक्षक से बात की। अधीक्षक ने खुद के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में होने और कॉन्फ्रेंसिंग खत्म होने के बाद आने का नाम कहा। साथ ही गार्ड को ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर को खुद के हवाले से बेहतर इलाज सुविधा देने का निर्देश देने को कहा। गार्ड जब डॉक्टर को अधीक्षक का निर्देश बताया तो डॉक्टर ने फिर झिड़क दिया। मनोहर झा ने खुद के मानवाधिकार से संगठन से जुड़े होने का परिचय दिया। फिर भी उनके साथ उपस्थित जूनियर डॉक्टर द्वारा दुर्व्यवहार किया गया। उन्होंने दरभंगा मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को भी फोन पर सारी बात बतायी और गुहार लगायी। पर सब बेकार हुआ।
अंततः अपने परिवार के संग वे अधीक्षक कार्यालय पहुंच गए और धरना पर बैठ गए। परंतु देर शाम तक अधीक्षक से उनकी मुलाकात नही हो सकी थी।
उपरोक्त सारी बातों की जानकारी देते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता मनोहर झा ने कहा कि जब हम जैसे सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जा रहा है तो भला आम लोगों के साथ क्या व्यवहार होता होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। जो जूनियर डॉक्टर पढ़ाई के दौरान इसप्रकार का व्यवहार कर रहे हैं, वे भविष्य में किस प्रकार का आचरण दिखाएंगे! लोग डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानते हैं, परंतु उनका ऐसा व्यवहार इस गरिमा को भी ताड़ताड़ कर रहा है।
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