वर्चस्ववादी सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध की संस्कृति को आजीवन समृद्ध करते रहे बाबा नागार्जुन: कुलपति।
दरभंगा: लोक शक्ति के उपासक बाबा नागार्जुन मूलत: विपक्ष के कवि थे। वे वर्चस्ववादी सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध की संस्कृति को आजीवन समृद्ध करते रहे। उनकी खासियत रही कि जनहित के विरुद्ध काम करने वालों को उन्होंने कभी नहीं बख्शा। चाहे वे सत्ता पक्ष के हों, विपक्ष के हों अथवा उनके अपने तथाकथित वाम पक्ष के ही क्यों न हों। ये बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने शुक्रवार को जनकवि बाबा नागार्जुन की 110वीं जयंती पर विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में ऑनलाइन संबोधन में कहीं। संस्थान के महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी के साथ कुलसचिव डॉ. मुश्ताक अहमद, परीक्षा नियंत्रक डॉ. एसएन राय, डीआर वन डॉ. कामेश्वर पासवान, केन्द्रीय पुस्तकालय के निदेशक डॉ. दमन कुमार झा, इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. अयोध्या नाथ झा आदि ने विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय परिसर में स्थापित बाबा नागार्जुन की प्रतिमा पर फूल-माला अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी। मौके पर विचार रखते हुए कुलसचिव डॉ. मुश्ताक अहमद ने कहा कि यात्री-नागार्जुन वास्तव में जनता की व्यापक राजनीतिक आकांक्षा से जुड़े विलक्षण कवि थे। उनका विभिन्न भाषाओं पर गजब का एकाधिकार था। उनकी रचनाओं में देसी बोली के ठेठ शब्दों से लेकर संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय पदावली तक उनकी भाषा के अनेक स्तर थे।परीक्षा नियंत्रक डॉ. एसएन राय ने कहा कि वे सही अर्थों में भारतीयता की मिट्टी से बने एक ऐसे आधुनिकतम कवि थे, जिन्होंने मातृभाषा मैथिली की माटी से निकलकर हिंदी साहित्य की अभूतपूर्व श्रीवृद्धि की। डॉ. दमन कुमार झा ने उन्हें सामाजिक सरोकार को प्राथमिकता देते हुए हमेशा सत्ता की आंख में आंख मिलाकर शब्द-वाण से घायल करने वाले जनकवि के रूप में उल्लिखित किया। डॉ. अयोध्या नाथ झा, संस्थान के मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा, डॉ. उदय कांत मिश्र, हरिकिशोर चौधरी, प्रो. चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई, आशीष चौधरी, रामाशीष पासवान, टीपू सिंह आदि ने भी विचार रखे।
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