Home Featured महादेवी वर्मा के स्मृति दिवस पर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में संगोष्ठी का आयोजन।
September 11, 2021

महादेवी वर्मा के स्मृति दिवस पर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में संगोष्ठी का आयोजन।

दरभंगा: शनिवार को छायावाद की महत्त्वपूर्ण स्तम्भ महादेवी वर्मा के स्मृति दिवस के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा प्रो० राजेन्द्र साह की अध्यक्षता में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो० राजेन्द्र साह ने कहा कि स्त्री अस्मिता की पहली लेखिका के रूप में महादेवी वर्मा सामने आती हैं। उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण छायावाद काल में नारी मुक्ति का अनुगूंज सुनाई पड़ता है। वैयक्तिकता का उद्घाटन ही छायावाद की सबसे मुख्य विशेषता है।

डॉ० साह ने कहा कि बुद्ध का करुणावाद महादेवी की सम्पूर्ण रचनाओं में दिखाई पड़ता है। उन्होंने कहा कि जहाँ मिलन का भाव बहुत संकीर्ण होता है वहीं विरह में व्यापकता दिखलाई पड़ती है। इसीलिए महादेवी की रचनाओं में विरह का स्वर प्रबल है। उन्होंने कहा कि महादेवी का वैवाहिक जीवन सफल नहीं हो सका और वही विरह उनकी रचनाओं में दीखता है। विद्रोही चेतना और साहस का भाव उनकी सम्पूर्ण रचनाओं में दिखाई पड़ता है। ‘विस्तृत नभ का कोई कोना’ जैसी महत्त्वपूर्ण पंक्ति पर भी उन्होंने विशेष रूप से प्रकाश डाला।

हिंदी विभाग के सह प्राचार्य डॉ० सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि स्त्री विमर्श आज चर्चा में आया लेकिन महादेवी में इस विमर्श का उत्स दिखाई पड़ता है। उन्होंने कहा कि मीराबाई के बाद दूसरी विद्रोही चेतना महादेवी में दिखाई पड़ती है। महादेवी वर्मा जिस ससीम और असीम की बात करती हैं उसे लोगों ने ठीक से नहीं समझा और उसे रहस्यवाद से जोड़ दिया। महादेवी का सम्पूर्ण साहित्य स्त्री की मुक्ति का साहित्य के तौर पर देखा जाना चाहिए।

डॉ० आनन्द प्रकाश गुप्ता ने इस अवसर पर कहा कि महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा कि उनकी सम्पूर्ण कविताओं में रहस्यवादी चेतना दिखलाई पड़ती है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि महादेवी ने ही हिंदी साहित्य में स्त्री-विमर्श की शुरुआत की। वे वेदना से ही अमरत्व प्राप्त करने की चाहत रखती थीं। अपनी वाणी को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि न केवल कविताओं में बल्कि संस्मरण औऱ रेखाचित्र सृजन में भी उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के सहायक प्राचार्य डॉ० अखिलेश कुमार ने कहा कि उनका सम्पूर्ण साहित्य आत्माभिव्यक्ति है। महादेवी वर्मा दुखवाद की कवयित्री हैं। उन्हें सुख से ज्यादा अपना दुख प्रिय है। ‘सन्धिनी’ महादेवी वर्मा की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है। मीरा और महादेवी वर्मा के संघर्षों पर उन्होंने तुलनात्मक ढंग से प्रकाश डाला। उनका जीवन संघर्ष ही उनकी कविताओं में अभिव्यक्त हुआ है। स्त्री विमर्श और स्त्री अस्मिता के रूप में भी वह अविस्मरणीय हैं।

सीएम कॉलेज दरभंगा के सहायक प्राचार्य अखिलेश राठौर ने कहा कि विरह रागात्मकता और मातृत्व प्रेम उनके ‘वर्मा’ उपनाम में ही दिखता है। मीरा की पंक्तियों से महादेवी की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि मीरा को श्रीकृष्ण के रूप में निदान मिला लेकिन महादेवी के हिस्से में सिर्फ वेदना आयी। उन्होंने कहा कि संस्मरण और रेखाचित्र के क्षेत्र में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनका प्रेम केवल मानव समाज तक सीमित नहीं है बल्कि उनका प्रेम मानवेतर प्राणियों तक फैला है।

अपने वक्तव्य में ललित नारायण जनता महाविद्याय झंझारपुर के सहायक प्राचार्य चन्द्रशेखर आजाद ने कहा कि महादेवी वर्मा छायावाद की आधार स्तम्भ हैं। उनकी कविताओं में विद्रोहात्मक चेतना दिखती है। पीड़ा और करुणा की अभिव्यक्ति उनकी कविताओं में दिखती है। उन्होंने दलित चिंतकों की पीड़ा से महादेवी की पीड़ा को जोड़ा।

ताजपुर कॉलेज समस्तीपुर की सह प्राचार्य डॉ० विनीता कुमारी ने महादेवी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला।
आरसीएस कॉलेज मंझौल के प्राचार्य डॉ० विजय कुमार ने कहा कि स्त्री होने की सजा उन्होंने भुगती थी। संस्कृत पढ़ने की उनकी चाहत इसलिए सफल नहीं हो सकी थी क्योंकि वे स्त्री थीं।
उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ0 कुमार ने कहा कि स्त्रियों पर जो बंदिशें थीं उसका बिल्कुल यथार्थ चित्रण उनके संस्मरणों में हुआ है।

शोधप्रज्ञ कृष्णा अनुराग ने कहा कि महादेवी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व साहस का परिचायक जान पड़ता है। महादेवी वर्मा हिंदी की पहली महिला साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

शोधप्रज्ञ धर्मेन्द्र दास ने कहा कि महादेवी ने अपनी करुणा के चित्रण से समाज में व्याप्त अंधकार को मिटाने का प्रयास किया।

शोधप्रज्ञ अभिषेक कुमार सिन्हा ने कहा कि उनकी ‘मेरा परिवार’ को पढ़कर समझा जा सकता है कि उनका प्रेम कितना विराट था।

एमए प्रथम छमाही की छात्रा स्नेहा कुमारी ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शोधार्थी और छात्र उपस्थित रहे।

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