एक ऐसा गांव, जहां लोग बाइक या साइकल से पहले नाव खरीदने को देते हैं प्राथमिकता।
दरभंगा: जिले के कुशेश्वरस्थान में एक ऐसा गांव है, जहां करीब हर परिवार के पास अपनी निजी नाव है। यहां के लोग बाइक या साइकल खरीदने से पहले नाव खरीदने को प्राथमिकता देते हैं। हालात ने इस गांव को नाव वाला गांव बना दिया है।
दरअसल गौरा गांव कुशेश्वर के औराई पंचायत में आता है। यहां रहने वाले लोग साइकिल और बाइक बाद में खरीदते हैं, इससे पहले नाव खरीदते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह गांव छह से नौ महीने तक पूरी तरह न सिर्फ टापू में तब्दील हो जाता है, बल्कि कई घरों में बाढ़ का पानी भी घुस जाता है। ऐसे में घर से बाहर किसी भी काम के लिए निकलने में नाव का ही सहारा होता है।
यहां रहने वाले लोग घर से निकल नाव चलाकर मुख्य सड़क तक पहुंचते हैं। फिर सड़क के किनारे पानी में नाव लगा मजदूरी करने निकल जाते हैं। महिला और बच्चे पशु चारे का इंतज़ाम करने के साथ-साथ बाकी जरूरी कामों के लिए भी नावों का इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि यहां सभी लोग नाव चलाना जानते हैं। बुजुर्ग हों या बच्चे, महिला हो या पुरुष, सभी अपनी-अपनी नाव खुद खे कर आते और जाते हैं। यहां तकरीबन नौ महीने तक पानी भरा रहता है। सिर्फ नाव से ही सभी तरह के काम करने पड़ते हैं। काम पर जाना हो या बच्चों को स्कूल पहुंचाना हो या फिर किसी बीमार को अस्पताल पहुंचाना हो, सभी काम नाव के सहारे होते हैं।
इस गांव की बदनसीबी है कि मुख्य सड़क से गांव को जोड़ने के लिए न तो कोई सड़क है और न ही कोई पुल है। कई दशकों से लोग यहां सड़क के साथ एक पुल की मांग कर रहे हैं, लेकिन सिवाए आश्वासन के उन्हें आज तक कुछ नहीं मिला। गांव वालों की मानें तो एक सरकारी नाव भी इन लोगों को नसीब नहीं होती है। ऐसे में लोग करीब बीस हजार की नाव पहले खरीदते हैं, बाद में साइकिल या बाइक खरीदने की सोचते हैं। जिनके पास खुद की नाव नहीं, वे नाव वालों की मदद के मोहताज होते हैं। 1000 से
गांव में करीब 200 से 250 घर हैं और 1000 से ज्यादा की आबादी है। एक सड़क पुल की मांग गांव वाले लगातार करते आ रहे हैं। सभी अधिकारी, नेता, मुखिया से शिकायत की, लेकिन हर कोई एक दूसरे जिम्मेदारी डाल देता है।
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