Home Featured हिंदी दिवस के मौके पर दोहा फुलवारी पुस्तक का हुआ लोकार्पण।
September 14, 2019

हिंदी दिवस के मौके पर दोहा फुलवारी पुस्तक का हुआ लोकार्पण।

दरभंगा:शनिवार को हिंदी विभाग एवं उर्दू विभाग के संयुक्त तत्वावधान में जुबली हॉल में “हिंदी-उर्दू में दोहा लेखन परंपरा पर विमर्श” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में अमेरिका से आए मुमताज शायर रफीउद्दीन राज की पुस्तक ‘दोहा फुलवारी’ का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ रिजवानउल्ला ने रफीउद्दीन राज के लिए प्रशस्ति-पत्र का वाचन किया। हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने हिंदी-उर्दू की परंपरा और देश की तहजीब को एक दूसरे से एकबद्ध बताते हुए उपस्थित लोगों का स्वागत किया। उन्होंने रफीउद्दीन राज की रचनाओं पर बोलते हुए कहा कि उनकी रचनाओं में कविता के सभी रूपों का निर्वाह हुआ है। गीता के श्लोक से अपने दोहा के बोल को ग्रहण करने वाले श्री राज की काव्यगत विशेषताएं बहुत ही प्रखर हैं। हिंदी में ‘दोहा फुलवारी’ के लिप्यांतरण को भी उन्होंने महत्वपूर्ण माना और कहा कि इस पुस्तक ने दोहा को फिर से जीवित किया है। कुलसचिव निशीथ कुमार राय ने हिंदी दिवस पर सभी लोगों को शुभकामनाएं दी तथा अपने पिता की लिखी हुई एक कविता पढ़कर उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । इस अवसर पर कुलपति प्रो॰ सुरेंद्र कुमार सिंह ने सबसे पहले हिंदी दिवस के लिए बहुत-बहुत बधाइयाँ दी और कहा कि विचार पहले हिंदी में ही मन में आते हैं फिर भले ही उनका अनुवाद कर उसे अंग्रेजी में प्रस्तुत करें, क्योंकि मातृभाषा संप्रेषण का मजबूत माध्यम है। उन्होंने भाषा कौशल विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया और इस बात के लिए खेद भी प्रकट की कि हिंदी के छात्रों की सामान्य भाषा में भी काफी गलतियां दिखती है। उन्होंने रफीउद्दीन राज की पुस्तक दोहा फुलवारी की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस पुस्तक में रचना-दृष्टि मिलती है, जो महत्वपूर्ण है।यह अवसर भाषा की प्रतिद्वंद्विता के स्थान पर भाषा के सहयोगात्मक स्वरूप को प्रदर्शन करने के कारण महत्वपूर्ण है। जफर हबीब ने रफीउद्दीन राज के जीवन-प्रसंगों की विस्तृत चर्चा की और बताया कि किस प्रकार संघर्ष करता हुआ यह व्यक्तित्व एक बड़े मुकाम तक पहुंचा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि राज साहब का जीवन तो अपने आप में प्रेरणास्रोत है, लेकिन उनका लेखन भी कम ध्यान नहीं खींचता। हजार से ज्यादा ग़ज़ल लिखने वाले श्री राज की रचनाओं में कहीं दुहराव का ना होना, उन्होंने उनकी शक्ति माना। उन्होंने जोर देकर कहा कि उर्दू शायरी की मुख्य परंपरा में उनका स्थान बहुत ऊंचा है।

कार्यक्रम के मूल विषय के रूप में उपस्थित रफीउद्दीन राज ने अपने को दरभंगा का निवासी बताया और जोर देकर कहा कि दरभंगा मेरे खून में बसता है। इसकी मिट्टी की सुगंध बहुत खास है, जो मेरा साथ नहीं छोड़ती। उन्होंने इस अवसर पर अपने कई शेर, दोहे और गजलें प्रस्तुत कीं। अपनी रचनाओं के द्वारा उन्होंने वस्तुतः मानवता की एकता की बात की, धर्म-मजहब के फासले को झूठा बताया और मनुष्यता को एक सूत्र में जोड़ने वाली परंपरा की याद दिलाई । उन्होंने जब कहा कि ‘हर आंगन की तुलसी की है एक जैसी खुशबू’ तो सचमुच भारतीय संस्कृति की गंगा- जमुनी तहजीब मूर्त हो गई।हिंदी साहित्य में दोहा लेखन की परंपरा की गहरी पड़ताल डॉ सतीश कुमार सिंह के वक्तव्य में दिखी। उन्होंने दोहा छंद के क्रम विकास और अपभ्रंश से हिंदी में आने के उसके इतिहास और भूगोल को समझाया ।भक्ति काल और रीति काल में दोहा छंद के प्राबल्य और खड़ी बोली में इसकी प्रासंगिकता को बताते हुए उनका मानना था कि दोहा छंद से तुकांत लिखने की पद्धति बढ़ी। आफताब अशरफ ने दोहा छंद के भाषिक स्वरूप की चर्चा की और प्रमाण में कई विद्वानों के मंतव्य सामने रखे। उन्होंने कहा कि दोहा छंद कम शब्दों में अधिक बातों की अभिव्यक्ति की खास पद्धति है। इसके अलावा उन्होंने नामचीन उर्दू और हिंदी के रचनाकारों से दोहे चुन-चुन कर पढ़ें, जो समकालीन संदर्भ को स्पष्ट करने वाले थे। इनके अलावा शाकिर याहिया ने भी कुछ दोहों को पढ़कर अपना मंतव्य रखा।
कार्यक्रम का प्रारंभ विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुआ। कुलगीत के बाद दीप प्रज्वलन का कार्यक्रम हुआ, जिसके उपरांत आगत अतिथियों को पाग, चादर एवं पुष्पगुच्छ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग की शोधप्रज्ञा प्रिया कुमारी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष सह मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो॰ रामचंद्र ठाकुर ने किया। कार्यक्रम में अध्यक्ष छात्र कल्याण,प्रो रतन कुमार चौधरी, विकास पदाधिकारी प्रो के के साहू, मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो मनोज कुमार झा , प्रधानाचार्य डा मुस्ताक अहमद‌,पत्रों विद्यानाथ झा, मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो‌ प्रीति झा, संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जीवानन्द झा , अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डा हिमांशु शेखर समेत कई पदाधिकारियों, विभागाध्यक्षों, शिक्षकगण के अलावा छात्र-छात्रा एवं शोधप्रज्ञों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही।

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