जिलाधिकारी की अध्यक्षता में हर खेत तक पानी को लेकर कार्यशाला आयोजित।
दरभंगा: प्रेक्षागृह दरभंगा में जिलाधिकारी दरभंगा राजीव रौशन की अध्यक्षता में हर खेत तक सिंचाई के लिए पानी को लेकर विचार गोष्ठी-सह-कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का उद्घाटन दीप प्रज्वलन कर जिलाधिकारी, मुखिया संघ के अध्यक्ष एवं उपस्थित प्रमुख गण द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
इस अवसर पर सभी मुखिया , प्रखंड प्रमुख, कृषि समन्वयक एवं किसान सलाहकार को संबोधित करते हुए जिला पंचायती राज पदाधिकारी आलोक राज ने कार्यक्रम की रूप-रेखा रखी तथा विचार गोष्ठी-सह-कार्यशाला का आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का नोडल विभाग जल संसाधन के मुख्य अभियंता हरि नारायण ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री सात निश्चय पार्ट-2 के तहत हर खेत तक सिंचाई का पानी पहुंचाने का संकल्प बिहार सरकार द्वारा लिया गया है, इसके लिए प्रथम चरण में सर्वे का कार्य जल संसाधन विभाग, लघु सिंचाई विभाग, कृषि विभाग, ऊर्जा विभाग एवं पंचायती राज विभाग के सहयोग से किया गया है।
जिसमें 01 लाख 98 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से 01 लाख 02 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित एवं 98 हजार हेक्टेयर भूमि को असिंचित क्षेत्र में पाया गया है, जिसके लिए सिंचाई के विभिन्न साधनों के लिए योजना बनाई जा रही है तथा कौन से सिंचाई के साधन किस खेत के लिए उपयुक्त होगा, चिन्हित किया जा रहा है।
अभी तक 28 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचाई साधन के लिए चयनित किया गया है, इस भूमि को स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं कृषि विभाग के माध्यम से चिन्हित करवाने का निर्णय जिलाधिकारी महोदय द्वारा लेते हुए आज का कार्यशाला का आयोजन किया गया है।
उन्होंने कहा कि दो हजार हेक्टेयर तक की भूमि के लिए सिंचाई की व्यवस्था लघु सिंचाई विभाग करती है, दो हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि के लिए सिंचाई की व्यवस्था जल संसाधन विभाग करती है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कार्यपालक अभियंता लघु सिंचाई विभाग ने कहा कि दो हजार हेक्टेयर तक की भूमि के लिए सिंचाई की व्यवस्था लघु सिंचाई विभाग करती है, जिनमें दो तरह से प्रबंधन किया जाता है एक सतही जल से सिंचाई की व्यवस्था दूसरा भू-गर्भ जल से सिंचाई की व्यवस्था।
जहां खेत, पोखर, तलाब, नदी, नहर उपलब्ध हो वहां सतही जल से या उद्वह योजना से लघु सिंचाई विभाग द्वारा सिंचाई की व्यवस्था कि जाती है, यदि आस-पास सतही जल उपलब्ध न हो तो, नलकूप के द्वारा भू-गर्भ जल से सिंचाई की व्यवस्था की जाती है, अतः किस खेत के लिए कौन योजना उपयुक्त होगी, इसकी, जानकारी हमें चाहिए।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिलाधिकारी ने कहा कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है कि ग्रामीण स्तर पर काम करने वाले सभी विभागों के साथ जनप्रतिनिधियों से समन्वय स्थापित करना जिससे कि वहां की जनता को अधिक से अधिक लाभ मिले।
उन्होंने कहा कि अपने पंचायत के बारे में आप बेहतर समझते हैं, एक किसान अपने खेत के बारे में बेहतर ज्ञान रखता है। कई विभागों के कार्यों के बारे में आपको जानकारी नहीं रहती है, इस गैप को पाटने के लिए आज का कार्यशाला का आयोजन किया गया।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सात निश्चय पार्ट-2 के तहत सरकार का संकल्प है, हर खेत तक स-समय फसल चक्र के अनुसार सिंचाई के लिए पानी पहुंचाना, ताकि कृषि उत्पादकता को बढ़ाया जा सके।
साथ ही जल संसाधन विभाग से भी अपेक्षा है कि वर्षा के दौरान जहां पानी लग जाता है, उस पानी की निकासी कर उसका सदुपयोग किया जाए।
उन्होंने कहा कि यदि खेती समय से नहीं होगी तो उत्पादकता भी घट जाती है और किसान को हानि होती है। जब हमारे किसान तरक्की करेंगे तब समाज भी तरक्की करेगा और हम विकास की बात कर सकेंगे।
उन्होंने कहा कि हर खेत को पानी पहुंचाने के लिए एक सर्वे करवाया गया है और सिंचाई साधनों की प्राथमिकता निर्धारित की गई है, कम लागत पर पानी उपलब्ध कराया जा सके, यही हमारा उद्देश्य है।
उन्होंने कहा कि डीजल का उपयोग करने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, इसलिए सतही जल का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके इस पर मंथन किया जाए।
उन्होंने कहा कि अच्छी सिंचाई प्रणाली के कारण दक्षिण बिहार धान एवं अन्य फसलों के उत्पादन में उत्तर बिहार से आगे है, जबकि मिट्टी यहां की ज्यादा उपजाऊ है। सोन नहर प्रणाली का इसमें प्रमुख योगदान है, सिंचाई का तंत्र वहां विकसित है।
उन्होंने कहा कि आज के कार्यशाला का यही मुख्य उद्देश्य है कि दरभंगा के विभिन्न क्षेत्रों में सिंचाई के किस तंत्र की संभावना ज्यादा है, यह जानकारी मिल सके।
उन्होंने कहा कि वे चाहेंगे कि जल संसाधन विभाग वैसी नहर प्रणाली विकसित करें, उन्होंने कहा कि यदि नहर की संभावना कहीं भी है तो उससे अवगत करावें और इससे केवल एक पंचायत के लिए सीमित नहीं रखा जाए। क्योंकि जल संसाधन विभाग दो हजार हेक्टेयर से अधिक की योजना पर ही काम करती है। उन्होंने कहा कि जिले में उद्वह योजना 113 स्थानों पर संचालित है, जिले में आहर,पईन की संख्या मात्र तीन है।
उन्होंने कहा कि नहर विस्तारीकरण की एक योजना खराजपुर की ली गई है, जल संसाधन विभाग का यह मानना है कि यहां की स्थलाकृति नहर प्रणाली के योग्य नहीं है। इसलिए आप से फीडबैक लेने का निर्णय लिया गया।
यदि स्थानीय जन प्रतिनिधि नहर प्रणाली की संभावना व्यक्त करते हैं तो इस पर कार्य विभाग को करने को कहा जाएगा।
उन्होंने कहा कि नदी की में चेक डैम बनाकर सिंचाई की संभावना भी तलाश की जा सकती है। उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे चेक डैम बनवाया जा सकता है, उन्होंने कहा कि कई बार नदी अपनी धारा बदल लेती है, पुरानी धारा को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट कर पानी को सिंचित किया जा सकता है जिससे हमारा सतही जल का आकार बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि दरभंगा में मखाना की खेती के लिए खेत विधि प्रणाली विकसित हो गई है, यदि खेतों में बाढ़ के समय 2 से 3 फीट तक पानी लगा रहता है उसे मेड़ बनाकर पानी रोककर मखाना की खेती की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीज चक्र का प्रयोग किया जा रहा है। यानी बीज के प्रकार बदल-बदल कर खेती करनी है उसके लिए बीज वितरण भी किया जाता है। यह मखाना पर भी लागू होता है वर्तमान में मखाना बीज के दो किस्म हैं सबौर मखाना और स्वर्ण वैदेही जिसे बदल बदल कर लगाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि एंटी फ्लड सुईल्स गेट जहां बनाया गया है, वहां से भी नहर निकाली जा सकती है अगर इस तरह की संभावना बनती है तो उसका भी प्रस्ताव दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नहर की पुनर्स्थापना की संभावना है, खेत में चैनल का भी विस्तार किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि उद्वह योजना के लिए अब अलग से बिजली की व्यवस्था सस्ती दर पर की जा रही है, इसलिए उद्वह योजना से भी हम सिंचाई की व्यवस्था कर सकते हैं। इस योजना के माध्यम से नदी के पानी को पाइप के माध्यम से खेतों में बने चैनल में छोड़कर बड़े भूभाग की सिंचाई की जा सकती है।
यदि चैनल बनाने के लिए खेत उपलब्ध नहीं है, तो स्थाई चैनल 12 इंच का पाइप के माध्यम से चैनल बनाया जा सकता है।
गंगाजल को राजगीर, नवादा एवं गाया तक पाइप के माध्यम से ही पहुंचाया गया है। इस विधि के अंतर्गत जगह-जगह पाइप जोड़ने के पॉइंट बनाया जा सकता है। जहां से पाइप जोड़कर वहां के खेतों में सिंचाई की जा सकती है, यह विधि भी अपनाई जा सकती है।
उन्होंने कहा कि भू-गर्भ जल हमारा सबसे कीमती जल स्रोत है यदि उसे हम संभाल कर नहीं रखेंगे तो पेयजल की समस्या उत्पन्न हो जायेगी।
उन्होंने कहा कि राज्य के अन्य हिस्सों में या दूसरे राज्य या अन्य देशों में पेयजल की भी बड़ी कठिनाई से व्यवस्था हो पाती है। हम सौभाग्यशाली है कि यहां वैसी समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि भू-गर्भ जल को बचाने के लिए सतही जल का आवरण बढ़ाना होगा ताकि वर्षा एवं बाढ़ का पानी अधिक से अधिक संचित किया जा सके, इससे भू-गर्भ जल रिचार्ज होता रहता है।
उन्होंने कहा कि राजकीय नलकूप चलाने की जिम्मेवारी अब ग्राम पंचायत को ही दी गयी है। कई बार चैनल नहीं रहने के कारण या छोटी-छोटी त्रुटि के कारण इसका उपयोग नहीं हो पाता है।
उन्होंने सभी मुखिया को इसके लिए संवेदनशील बनने को कहा। उन्होंने कहा कि किसानों को जितना अधिक लाभ पहुंचा सकते हैं, आप लाभ पहुंचावें, आप में से बहुत सारे लोग अपने गाँव के विकास के लिए उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग किया है। यह भी हमने पंचायतों में भ्रमण के दौरान देखा है, इसलिए आप प्रस्ताव देंगे ताकि उस पर विमर्श कर कार्य किया जा सके।
कार्यक्रम में जल संसाधन विभाग, लघु सिंचाई विभाग, आत्मा, कृषि विभाग एवं पंचायती राज विभाग द्वारा पंचायतों में क्रियान्वित अपनी अपनी योजनाओं से संबंधित प्रस्तुतीकरण किया तथा जनप्रतिनिधियों से संवाद किया, उनके सुझाव लिए गए।
कार्यक्रम का संचालन उप निदेशक जन संपर्क नागेंद्र कुमार गुप्ता ने किया।
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