कुलपति ने की प्रदेश के संस्कृत कॉलेजों के प्राचार्यों के साथ ऑनलाइन बैठक।
दरभंगा: कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने शनिवार को पूरे प्रदेश के संस्कृत कॉलेजों के प्राचार्यों के साथ ऑनलाइन बैठक की।
कुलपति का मुख्य फोकस इस बात पर रहा कि संस्कृत बोलचाल की भाषा कैसे बने, कैसे इस भाषा को समाज में सुग्राह्य बनाया जाय, कौन-कौन वैसे प्रयास हों जिससे छात्र अधिक संख्या में संस्कृत से जुड़े। कुलपति ने कार्यालयीय कार्यों व शिक्षण व्यवस्था में भी उन्होंने समेकित सुधार की दरकार जताई। बैठक में कुल 78 प्रधानाचार्य जुड़े थे। कुलपति ने कहा कि संस्कृत संजीवनी है। समय साक्षी है कि विदेशी ताकतों ने इसे खत्म करने का अथक प्रयास किया, लेकिन सारी ताकतें बेकार रही। कोई इसे चाहकर भी नहीं मिटा सकता। यह अजर-अमर है। इसके प्रचार व प्रसार व विश्व स्तर पर इसकी धाम जमाने की महती जिम्मेदारी हमलोगों जैसे संस्कृतानुरागियों पर ही है। ज्ञान, विज्ञान, दर्शन व संस्कृत के मामले में मिथिला का बहुत सशक्त इतिहास रहा है। यही कारण रहा कि महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह ने संस्कृत के सम्वर्धन व विकास के लिए अपना राज पैलेस तक दान कर दिया। पीआरओ निशिकांत ने बताया कि कुलपति ने मन से, वचन से व व्यवहार से शुद्ध, स्पष्ट व स्वच्छ रहने पर भी बल दिया। कुलपति ने संस्कृत संभाषण पर जोर देते हुए कहा कि संस्कृत को देवभाषा कहकर हमसभी कहीं न कहीं अशुद्ध बोलने के भय से या फिर संकोच से इस भाषा का उपयोग ही कम करने लगे हैं। इसीसे यह भाषा कठिन होने लगी है। जब हम बोलेंगे तभी समाज सुनेगा, तभी छात्र हमारी ओर आकर्षित होंगे और देववाणी लोकवाणी बन जाएगी। प्रयास करने से यह सम्भव है।
कुलपति ने कहा कि बेहतर होगा कि खेल में, नृत्य में, नाटक में संस्कृत का प्रयोग करें। इसके लिए शिविर लगाएं, विशेष कक्षाएं संचालित करें तथा कार्यशाला का आयोजन करें।
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