कभी राजद का गढ़ माने जाने वाले दरभंगा लोकसभा में दो दशक से है एनडीए का दबदबा।
दरभंगा: दरभंगा लोकसभा क्षेत्र को कभी राजद का गढ़ माना जाता था। पर पिछले दो दशक से इसकी स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, यहां एनडीए का दबदबा कायम रहा है। कुल मिलाकर कहा जाय तो दरभंगा लोकसभा के छह विधानसभा क्षेत्रों में वर्तमान में एनडीए की स्थिति मजबूत है।
विधानसभा की छह में पांच सीटों पर एनडीए, जबकि एक पर महागठबंधन का कब्जा है। अलीनगर, दरभंगा व गौड़ाबौराम में भाजपा के विधायक हैं। बेनीपुर व बहादुर में जदयू, जबकि दरभंगा ग्रामीण में राजद विधायक हैं।
पूर्व में यह सीट राजद का मजबूत किला मानी जाती थी, लेकिन बीते तीन लोकसभा चुनावों में इस सीट से भाजपा ने जीत दर्ज की है। इस बार फिर दरभंगा सीट पर भाजपा व राजद के बीच कांटे की टक्कर होने वाली है। दरभंगा लोस क्षेत्र की करीब 84.13 प्रतिशत आबादी ग्रामीण तथा 15.87 प्रतिशत शहरी आबादी है। अनुसूचित जाति की आबादी 15.44 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजाति 0.06 प्रतिशत है। मतदाताओं की संख्या करीब 18 लाख है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू एनडीए में शामिल था। कुल 58.35 प्रतिशत मतदान में एनडीए अर्थात भाजपा को 60 फीसदी तथा राजद को 33 फीसदी मत मिले थे।
वर्तमान में भाजपा के डॉ. गोपाल जी ठाकुर दरभंगा के सांसद हैं। इससे पूर्व 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां त्रिकोणीय मुकाबला था। अर्थात राजद के साथ ही जदयू व भाजपा के उम्मीदवार भी मैदान में थे। उस वर्ष कुल 55.45 प्रतिशत मतदान में भाजपा को 38 फीसदी, जदयू को 13 और राजद को करीब 34 फीसदी मत मिले थे। बीते दो चुनावों में मतों का आंकड़ा देखने से लगता है कि इस बार भी लोकसभा चुनाव में एनडीए का पलड़ा भारी है।
हालांकि विधानसभावार आंकड़ों को देखने से स्थिति थोड़ी अलग दिखती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए व महागठबंधन के वोटों का अंतर काफी अधिक था। एनडीए को महागठबंधन से करीब 27 फीसदी अधिक मत मिले थे, लेकिन एक साल बाद ही 2020 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए व महागठबंधन के बीच मतों का आंकड़ा बेहद मामूली रहा। 2020 के विधानसभा चुनावों में इन छह विधानसभाओं में एनडीए को 40.86 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि महागठबंधन को 37.93 प्रतिशत मत मिले थे। राजनीतिक पंडितों एवं मतदाताओं का कहना है बीते लोकसभा चुनाव में पुलवामा जैसे राष्ट्रीय मुद्दों की लहर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण चुनाव कमोबेश एकतरफा ही रहा था, लेकिन इस बार स्थिति बदल भी सकती है।
दरभंगा लोकसभा सीट पर बीते तीन दशकों से राजद व भाजपा का वर्चस्व रहा है। 2009 से लगातार यह सीट भाजपा के खाते में है। आजादी के बाद 1972 तक यह सीट कांग्रेस के पास रही। 1977 में पहली बार जनता पार्टी से सुरेंद्र झा सुमन ने यहां से जीत दर्ज की। 1980 में कांग्रेस के हरिनाथ मिश्र जीते, जबकि 1984 के चुनाव में लोक दल के प्रत्याशी विजय कुमार मिश्र को जीत मिली। इसके बाद यह सीट कांग्रेस को कभी नहीं मिली। 1989 में इस सीट पर जनता दल ने कब्जा कर लिया और शकीलुर्र रहमान विजयी हुए। उसके बाद 1991 और 1996 में जनता दल और 1998 में राजद के टिकट पर मो. अली अशरफ फातमी ने यहां से जीत की हैट्रिक लगाई। भाजपा को पहली जीत कीर्ति आजाद ने 1999 में दिलायी, लेकिन 2004 में फातमी ने फिर से यहां वापसी की। इसके बाद से यहां भाजपा लगातार जीतती आ रही है। 2009 एवं 2014 में कीर्ति आजाद और 2019 में डॉ. गोपालजी ठाकुर ने यहां भाजपा का परचम लहराया।
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