बिहार को सजाने व संवारने के लिए सबको आगे आने की जरूरत : प्रो. मुनेश्वर यादव।
सीएम के नेतृत्व में कई प्रदेशों से बेहतर है बिहार, तेजी से हो रहा समग्र विकास : प्रो० दिलीप चौधरी।
दरभंगा: मंगलवार को मिल्लत महाविद्यालय में “बिहार में विकास :- चुनौतियां एवं संभावनायें” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गई।
महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. इफ्तेखार अहमद की अध्यक्षता आयोजित इस कार्यक्रम की शुरूआत पर्सियन शिक्षक डॉ. अब्दुल सलाम जिलानी ने कुरान शरीफ की तेलाबते कुरान से की।
इसके बाद आगत अतिथियों ने दीप प्रज्वलित किया। महाविद्यालय की छात्र-छात्राओं ने स्वागत गान पेश कर सेमिनार की भव्यता में चार-चांद लगा दिया। स्वागत भाषण प्रधानाचार्य डॉ. इफ्तेखार अहमद ने किया।
विषय प्रवेश कराते हुए मिल्लत महाविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक सह सेमिनार के संचालन सचिव सह महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के युवा जोश से लबरेज शिक्षक डॉ. जमशेद आलम ने कहा कि आजादी के पूर्व बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में शुमार था। एक दुर्भाग्य कहा जाय कि सन 2000 ई. में बिहार का बंटवारा हो गया और कुल उद्योग के महत्वपूर्ण 67% उद्योग झारखंड के हिस्सों में चला गया। जबकि कुल आबादी का 65% जनसंख्या बिहार के हिस्सों में आ गया और धीरे-धीरे बिहार पिछड़े राज्यों में शुमार हो गया और हम शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन, आधारभूत संरचना, कृषि, उद्योग, परिवहन, साक्षरता दर, विज्ञान व तकनीक आदि में पिछड़ते चले गये जो कि हमारे लिये चुनौतियां हैं लेकिन हम सबों की जवाबदेही है कि इस चुनौतियों का एकजुट होकर समाधान निकालें। इसके लिये विधायिका, कार्यपालिका, मीडिया, जनता, शिक्षक सहित सभी वर्गों को अपना सर्वश्रेष्ठ देने की जरूरत है। यकीन मानिये जिस दिन हम यह देने में कामयाब हो गये उस दिन बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में शुमार हो जायेगा।
बतौर बीज वक्ता विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष, प्रो. मुनेश्वर यादव ने कहा कि इतिहास गवाह है कि विकास का रास्ता शिक्षा के माध्यम से होकर गुजरता है और आज उस उच्च शिक्षा की बदकिस्मती यह है कि बिहार के हर प्रखंड में आज डिग्री कॉलेज तक नहीं है। 2 करोड़ की आबादी पर एक विश्वविद्यालय है। मुझे यह कहते हुए कोई गुरेज नहीं है कि बिहार विद्यार्थी, बेरोजगार युवा व मजदूरों का सबसे बड़ा निर्यातक प्रदेश बन कर रह गया है। 1980 के बाद कोई महाविद्यालय नहीं खुला। विश्वविद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं है। हम बेरोजगारों की फौज तैयार कर रहे हैं। साक्षरता दर निम्न है। मौजूदा दौर में बिहार में अशिक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, शोध व विकास में हमारी उपलब्धियां शून्य हैं जो कि प्रमुख चुनौतियां हैं। जबकि देखा जाय तो बिहार का सकल घरेलू उत्पाद 10.98 है जो कि देश के सकल घरेलू उत्पाद 8.67 से ज्यादा है और राज्य में टॉप से तीसरे स्थान पर है। इसीलिए यह मंथन का विषय है कि हम बिहार को विकसित क्यों नहीं कर पाते हैं। अब बिहार को भाग्यवादिता से बाहर निकालना होगा और शिक्षा, प्रशासन और नीति निर्धारण में क्रांति लाने की जरूरत है। इसीलिए बिहार को सजाने व संवारने के लिये सबको आगे आने की जरूरत है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, पटना के डॉ. रवींद्र कुमार वर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि सबसे पहले हमें इस चीज पर मंथन करना होगा कि किसका विकास किया जाय बिहार में? मौजूदा सरकार के द्वारा आधारभूत संरचनाओं पर पैसा झोंक दिया गया लेकिन उसके आर्थिक आउटपुट का अध्ययन नहीं किया जा रहा है और यही स्थिति हर क्षेत्र की है। 50 लाख की आबादी व लगभग 25 से 50 किलोमीटर की दूरी पर एक कॉलेज है। फिर कैसे पढ़ेंगे बच्चे। सोचना होगा कि बिहार का अगर ग्रोथ रेट ज्यादा है तो फिर गरीबी क्यों हैं? बिहार की शिक्षा सर्टिफिकेट बेस है। इसे बुनियादी शिक्षा से जोड़ने की जरूरत है। किसानों को विभिन्न स्कीमों से खैरात नहीं बल्कि उन्हें पैदावार का मूल्य दिया जाना चाहिये। युवाओं को रोजगार से जोड़े उनमें उद्यमी का गुण विद्यमान है। विकास की परिभाषा समय और काल के हिसाब से बदलता रहता है। विकास का मतलब मॉडल नहीं बल्कि आम जनताओं की अपेक्षा है। इसीलिए सबसे बड़ी चुनौती विकास के अवधारणा को जानना है और इसे सही मायनों में जाने बिना हम विकसित बिहार की नींव नहीं रख सकते हैं।
बतौर मुख्य अतिथि पूर्व विधान परिषद सह चंद्रधारी मिथिला विज्ञान महाविद्यालय, दरभंगा के प्रधानाचार्य प्रो. दिलीप चौधरी ने कहा कि आज कई मायनों में हिंदुस्तान के कई प्रदेशों से बेहतर है बिहार। सीएम नीतीश के नेतृत्व में बिहार काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। समय के साथ विकास का परिभाषा बदलता रहता है। बिहार अपने सीमित संसाधनों में विकास के लिये प्रतिबद्ध है। बिहार में विकास को तेज रफ्तार की जरूरत है। केंद्र सरकार भी अगर अपेक्षित सहयोग देती है तो बिहार के विकास की गति और तेज होती। आम जनता को भी चाहिये कि बिहार के विकास में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें। बिहार में संस्था कम नहीं है लेकिन जवाबदेही की कमी है। इसीलिए सामूहिक जवाबदेही से ही बिहार को विकसित बनाया जा सकता है।
उप परीक्षा नियंत्रक द्वितीय डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि आवश्यकता है विकास की संभावनाओं एवं संभाव्यताओं को ढूंढ निकालने की, आत्म-मंथन की और प्रगति के पथ पर अग्रसर होने की। शेष बिहार में भी विकास की संभावनाएं हैं। अगर रत्न-गर्भा वसुंधरा झारखंड में चली गई, तो शस्यश्यामला भूमि बिहार में हैं, जो विश्व की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि में से एक है। अगर खनिज और वन-संपदा उधर गई तो जल-संपदा इधर है और समुचित जल प्रबंध न की नीति अपनाने पर न केवल बाढ़ का नियंत्रण होगा, बल्कि सिंचाई के स्रोत भी विकसित होंगे, जल-विद्युत का उत्पादन बढ़ेगा और मत्स्य पालन तथा मखाना की खेती जैसे अति लाभदायक धंध भी विकसित होंगे। पुन: अगर राजस्व स्रोत झारखंड में गए हैं तो व्यय में मद भी अधिकतर उधर ही गए हैं क्योंकि प्रति व्यक्ति योजना-व्यय ज्यादा ही होता रहा है। नि:संदेह शेष बिहार में राजस्व स्रोत सीमित हैं, लेकिन जब साधन सीमित हों तो आवश्यकता केवल उनके उपयोग की नहीं बल्कि सदुपयोग की होती है और उसके लिए जरूरी है दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति, सुदृढ़, स्वच्छ एवं कृतसंकल्प प्रशासनिक तंत्र, विकास की सही व्यूह-रचना और दिशा-निर्देशन, केंद्र-राज्य सहयोग, जनता में जागरूकता और उनकी सहभागिता, विकास की मानसिकता, कठोर परिश्रम, त्याग एवं सामाजिक समरसता। कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था भी विकास पथ पर अग्रसर हो सकती है। पंजाब और हरियाणा की अर्थव्यवस्था तो कृषि आधारित अर्थव्यवस्था रही है, लेकिन उनके विकास में कृषि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
राजनीति विज्ञान विभाग के विभागीय शिक्षक ने रघुवीर कुमार रंजन ने कहा कि आजादी से 1967 तक बिहार में अगड़ों की राजनीति देखने को मिली, 1967 से 1990 तक मिश्रित राजनीति देखने को मिली, 1990 के बाद पिछड़ों की राजनीति देखने को मिली लेकिन अब बिहार को सप्तरंगी राजनीति की जरूरत है जिसमें सबों को साथ लेकर चला जाय। यकीनन अगर यह हो जाता है तो बिहार के विकास को कोई रोक नहीं सकता।
महाविद्यालय के शिक्षक डॉ. जोहा सिद्दीकी ने कहा कि बिहार में उपलब्ध सीमित संसाधनों में विकास करना सबसे बड़ी चुनौती रही है लेकिन विकास पुरुष नीतीश कुमार के प्रतिबद्धता के आगे ये चुनौतियां बौनी पड़ गयी और आज बिहार विकास का रफ्तार भर चुकी है और जल्द विकसित राज्यों की श्रेणी में शुमार होगा।
उद्घाटन सत्र में मंच संचालन पूर्व कुलसचिव सह वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. मुस्तफा कमाल अंसारी ने किया जबकि ज्ञापन डॉ. सोनी शर्मा ने किया।
तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. जमशेद आलम ने किया। इस दौरान चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालय, दरभंगा के डॉ. आशीष बरियार, डॉ. आलोक रंजन, मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. गंगेश कुमार झा व आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के डॉ. अब्दुल सलाम जिलानी ने अपना-अपना विचार प्रस्तुत किया। इस दौरान समस्तीपुर महाविद्यालय, समस्तीपुर के डॉ. सुमन कुमार सिन्हा, शोधार्थी सह शिक्षक प्रवीण कुमार, शिक्षक डॉ. मो. जमील हसन अंसारी, रास नारायण महाविद्यालय, पंडौल मधुबनी के डॉ. माला कुमारी व अर्थशास्त्र के शोधार्थी राहुल कुमार सर्राफ आदि ने अपना पेपर प्रस्तुत किया। तकनीकी सत्र में धन्यवाद ज्ञापन राम निरीक्षण आत्मा राम महाविद्यालय, समस्तीपुर के प्राध्यापक डॉ. राजीव रौशन ने किया।
इस दौरान महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह महाविद्यालय सरिसव पाही के प्रधानाचार्य डॉ. विजय मिश्रा, नीतू कुमारी, कुंवर सिंह महाविद्यालय, लहेरियासराय के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. जय कुमार झा, डॉ. अमित कुमार सिन्हा, डॉ. सिसिर कुमार झा के साथ मिल्लत महाविद्यालय के डॉ. मो. इंसान अली, प्रो. एमसी मिश्रा, डॉ. सियाराम प्रसाद, डॉ. अब्दुल राफे, डॉ. शाहनवाज आलम, ओरिएंटल कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्रधानाचार्य डॉ. जीएम अंसारी, डॉ. इस्मत जहां, डॉ. राज किशोर पासवान, डॉ. सुनीता झा, डॉ. कीर्ति चौरसिया, डॉ. नाहिद जेहरा, डॉ. मनीष कुमार, डॉ. शैलेश कुमार मिश्रा, डॉ. राधा नारायण, डॉ. इफत आरा, डॉ. रीना कुमारी, डॉ. यासिर सज्जाद, डॉ. मुश्ताक, डॉ. मुन्ना साह, डॉ. अबुल बसर, डॉ. सुम्मा रानी कोले, डॉ. शगुफ्ता निगार, डॉ. टी. रहमान, डॉ. उज्मा नाज व डॉ. उरूज इमाम आदि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की समाप्ति राष्ट्रगान के साथ हुई। पूरे सेमिनार के दौरान राष्ट्रीय सेवा योजना व राष्ट्रीय कैडेट कोर के छात्रों ने एकता और अनुशासन का परिचय दिया और पूरे सेमिनार के दौरान आकर्षण का केंद्र बने रहे। सभी आगत अतिथियों को पाग, चादर, गुलदस्ता, व मोमेंटो देकर स्वागत किया गया।
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