कुशी अमावस्या पर शहर से लेकर गांव तक लोगों ने किया कुशोत्पाटन।
दरभंगा: सनातन धर्म में भाद्रपद अमावस्या को बहुत ही महत्व दिया गया है। इस भाद्रपद अमावस्या के दिन पूजा करने सें कालसर्प दोष दूर होता है। इस अमावस्या के दिन धार्मिक रूप से कुशा को इकट्ठा किया जाता है। इस कुशा का प्रयोग साल भर धार्मिक कार्यों व पितृ कार्यों के प्रयोग में लिया जाता है। इस भाद्रपद अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या यानी कुशी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
दरभंगा में भी गुरुवार को जिले के शहर से लेकर गांवों तक विभिन्न क्षेत्रों में लोग सुबह से ही कुशोत्पाटन करते दिखे। इसबार कुशोत्पाटन का समय सुबह से लेकर पूरे दिन को शुभ माना गया है।
शुभंकरपुर निवासी पंडित विनोद झा ने कुश के महत्व के विषय मे जानकारी देते हुए बताया कि कुश की पत्तियां नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। इसका आसन, अंगूठी और भी कई वस्तु बनाकर उपयोग में लाया जाता हैं। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है। अथर्ववेद में इसे क्रोधशामक और अशुभ निवारक बताया गया है।
उन्होंने बताया कि आज भी नित्य नैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कुश से तेल निकाला जाता था, ऐसा कौटिल्य के उल्लेख से ज्ञात होता है।
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