यह 1962 का नहीं बल्कि 2023 का नया भारत है जो अगर शास्त्र, संवाद व शांति से समझाना जानता है तो शस्त्र भी उठाना जानता है: प्रो. मुनेश्वर यादव।
दरभंगा: सोमवार को विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग में विभागाध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव की अध्यक्षता में “भारत-चीन राजनीतिक संबंध” पर विशेष व्याख्यान का आयोजन विभाग के कौटिल्य कक्ष में किया गया। सबसे पहले बतौर मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह महाविद्यालय, लोधी रोड, नई दिल्ली के राजनीति विज्ञान विभाग के नामचीन विद्वान सह सह-प्राध्यापक प्रो. विजय कुमार वर्मा का मिथिला की पवित्र धरा पर आगमन के अवसर पर व बतौर विशिष्ट अतिथि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह का मिथिला के पारंपरिक परिधान पाग व चादर देकर सम्मानित किया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विभागाध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि हिंदुस्तान 1951 से ही अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिये सदैव प्रयत्नशील व प्रतिबद्ध रही। दुनिया की शक्ति दो खेमावादी धरा में बंटी थी:- अमेरिका व सोवियत संघ। बावजूद हम किसी धरा के साथ कभी नहीं गये और सदैव से लोकतंत्र में विश्वास रखा व गुट निरपेक्ष का सदस्य बना रहा। लेकिन आज कुछ देश ऐसे हैं जिन्हें भगवान बुद्ध व संवाद की संस्कृति समझ ही नहीं आती है उन्हें हम इस मंच से कहना चाहते हैं कि अब कोई हमें 1962 का हिंदुस्तान समझने की भूल न करें। यह 2023 का नया भारत है जो अगर शास्त्र, संवाद व शांति से समझाना जानता है तो शस्त्र भी उठाना जानता है। जो गांधी को भी पूजता है और भगत सिंह-चंद्रशेखर आजाद को भी। हम किसी को पहले छेड़ते नहीं हैं और जो छेड़ने की हिमाकत करता है उसे छोड़ते भी नहीं है जिसका ज्वलंत उदाहरण सर्जिकल-एयर स्ट्राइक व गलवान घाटी है।
बतौर मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह महाविद्यालय, लोधी रोड, नई दिल्ली से आये राजनीति विज्ञान के नामचीन विद्वान डॉ. विजय वर्मा ने कहा कि चीन अपने सस्ते व्यापार के माध्यम से विश्व के लगभग हर देशों में प्रवेश कर चुका है। किसी भी वस्तुओं के असेंबल के दृष्टिकोण से विश्व में आर्थिक रूप से संपन्न देश चीन सुपर मार्केट के रूप में उभरा है। क्योंकि यहां आज भी सस्ते श्रम उपलब्ध हैं। सस्ता श्रम होने की वजह से हर कुछ का उत्पादन करने में सक्षम है जिस कारण पूरे विश्व अर्थव्यवस्था पर वह सिक्का जमा लिया है। भारत सदैव से “सर्वें भवन्तु सुखिनः” व चीन “एको अहं द्वितीयो आस्ति” में विश्वास रखता है। यही कारण है कि चीन अपनी सनक व हनक से कभी बाज नहीं आता और सदैव कुछ न कुछ गलत करते हुए पकड़ा जाता है। चीन की सदैव से एक नीति रही है कि वो कमजोर राष्ट्रों को कब्जा कर लेता है और मजबूत राष्ट्रों के साथ कभी सामने से प्रत्यक्ष रूप से युद्ध नहीं लड़ता है। चीन सदैव से छद्म युद्ध लड़ने में माहिर है। उसका सदैव से प्रयास रहता है कि वो किसी देश के आर्थिक सिस्टम पर वार करें जिससे वह देश स्वतः टूट जाय। उसका इतिहास रहा है कि वो अपने से मजबूत राष्ट्रों पर धोखे से वार करता है। दुनिया सस्ते श्रम के कारण अपने प्रोडक्ट के असेंबल का मार्केट चीन में रखने के लिये मजबूर थी और भारत की ओर देख रही थी। भारत ने दुनिया को निराश नहीं किया और उनके अपेक्षाओं व आशाओं को देखते हुए भारत ने अपनी आर्थिक व विदेश नीति में काफी बदलाव लाकर विश्व को नये मार्केट के लिये भारत का द्वार खोल दिया। मोदी सरकार के आने के बाद भारत ने वैश्विक निवेशक को भारत में निवेश के लिये बड़े स्तर पर आमंत्रण दिया है। जिसके बाद एप्पल सहित एलन मस्क तक की कंपनियां भारत में निवेश के लिये बरकरार है तो वहीं दूसरी ओर लाखों डॉलर का निवेश भारत में आ चुका है। बस यही से शुरू होता है चीन के भारत के प्रति बौखलाहट की कहानी। वो हमारे चारों ओर से हमें कमजोर करने पर लगा हुआ है। नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान व बंगलादेश आदि को कई प्रकार से आर्थिक मदद पहुंचा रहा है। भारत-नेपाल के बीच बेटी-रोटी का संबंध है जिसे भी तोड़ने में वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है। पाकिस्तान को पाक अधिकृत कश्मीर होते हुए आर्थिक कॉरिडोर आदि का मदद देकर भारत में आतंक बढ़ाने का व कमजोर करने का साजिश रचता रहता है। कोरोना जैसे महामारी को चीन ने दुनिया से छिपाया। बावजूद भारत ने चीन को स्पेशल पीपीई किट मुहैया कराया और जब भारत भी इसका शिकार हुआ तो वहीं चाइना ने हमें घटिया किस्म का पीपीई किट दिया। इस मुश्किल घड़ी में हमने N95 किट का ना सिर्फ उत्पादन किया बल्कि दुनिया को N95 किट मुहैया कराया। वैश्विक भूमिका निभाते हुए हमने हाइड्रोक्लोरोक्सिन दवा अमेरिका जैसे देशों को प्रदान किया। गलवान में मारे गये चीनी ड्रैगनों की जानकारी दुनिया से छिपाया। लाल सागर में उसका षड्यंत्र किसी से छिपा हुआ नहीं है। जी:- 20 में शी-जिनपिंग खुद भारत ना आकर चीन के प्रधानमंत्री को भेजा जो कहीं न कहीं चीन के जलन को दर्शाता है। चीन सदैव से विस्तारवादी नीति को मानता है और बेवजह हर पड़ोसी राष्ट्रों से ही नहीं बल्कि वक्त-वक्त पर दुनिया के सुपर पावर अमेरिका आदि राष्ट्रों से भी उलझता रहता है। अरे आप आग बढ़िये, आपको आगे बढ़ने से कौन रोक रहा है। दुनिया में हर राष्ट्र को समृद्धि प्राप्त करने का अधिकार है लेकिन सही रास्ते को अपनाकर, लोकतांत्रिक तरीके को अपनाकर ना कि छद्म नीति व षडयंत्र रचकर। बावजूद छद्म नीति और षडयंत्र रचने से चीन भविष्य में बाज नहीं आता है तो चीन कान खोलकर सुन लें कि हिंदुस्तान भगवान बुद्ध में भी विश्वास रखता है और जरूरत पड़ने पर युद्ध से भी करारा जवाब देना जानता है।
बतौर विशिष्ट अतिथि संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने पंडित नेहरू से लेकर पीएम मोदी तक हुए कई समझौतों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि कैसे चीन के फितरत में है हर समझौतों को तोड़ना और सदैव धोखा देने का काम किया है। अब जरूरत है कि भारत सरकार अपने सशक्त कूटनीतियों का प्रयोग कर चीन को विश्व स्तर पर अलग-थलग करें और भारत के अंदर चीन के वस्तुओं व कंपनियों को बैन करें। हालांकि भारत सरकार ने इस दिशा में चीनी वस्तुओं को बैन करने का सिलसिला शुरू कर दिया है।
बतौर मिथिला विश्वविद्यालय के उप-परीक्षा नियंत्रक (तकनीकी व व्यवसायिक शिक्षा) सह विभाग के युवा व्याख्याता डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि मौजूदा समय में अभी चीन दुनिया के सामने कई चीजों को लेकर बेनकाब हो गया है। भारत सरकार के पास विश्व बिरादरी के सामने चीन को विश्व स्तर पर अलग-थलग करने का इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता है। साथ ही भारत सरकार के वोकल फॉर लोकल, मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया व स्वदेशी अभियान की सराहना की और आमजनमानस से भी सहयोग कर सरकार के इस अभियान का साथ देने की अपील की जिससे कि भारत स्वाबलंबी ही नहीं आत्मनिर्भर भी बनें। यकीनन वो दिन दूर नहीं जब हमारा भारत विश्वगुरु बन जायेगा और छद्म युद्ध में माहिर चीन को भी करारा जवाब मिल जाएगा।
अंत में प्रो. वर्मा विदा लेते समय भावुक हो उठे और कहा कि आज तक शास्त्रों व लोगों के मुख-मंडलों से सुना था कि मिथिला अपने सांस्कृतिक विरासत को लेकर आज भी काफी धनी है। मिथिला के लोगों में संस्कार व संस्कृति कूट-कूट कर भरा हुआ है। आज मैं भी इस बात का गवाह बन गया। दिल्ली से जब दरभंगा के लिये चला था तो मन में कई प्रश्न रह-रह कर हिलोकरें लगा रहे थे। लेकिन यहां पहुंचने के बाद लगा कि वैसे नहीं विदेह महाराज जनक की धरती है मिथिला। जनक नंदिनी मां जानकी की धरती है मिथिला, विद्यापति, अयाची, मंडन व नागार्जुन की धरती है मिथिला। सच कहूं तो विद्वानों की धरती है मिथिला। आज राजनीति विज्ञान विभाग ने जो सम्मान दिया है, उसे पाकर मैं अभीभूत हूँ। राजनीति विज्ञान विभाग को देखकर अच्छा लगा कि वो टीम वर्क में काम कर रही है और जब टीमों का समन्वय बेहतर हो तो हम कठिन से कठिन लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। मैं राजनीति विज्ञान विभाग को इसके लिये बधाई व स्वर्णिम भविष्य की शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।
मंच संचालन विभाग के वरीय शिक्षक डॉ. मुकुल बिहारी वर्मा ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन गंगेश कुमार झा ने किया।
इस अवसर पर विभाग के रघुवीर कुमार रंजन, दिनेश कुमार ,संजय सुमन ,कुंवर सिंह महाविद्यालय, लहेरियासराय के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. जय कुमार झा, आलोक तिवारी, सहित सैकड़ों छात्र-छात्रा व शोधार्थी उपस्थित थी।
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