Home Featured संस्कृत विश्वविद्यालय में गुरु-शिष्य परम्परा उत्सव का हुआ आयोजन।
July 21, 2024

संस्कृत विश्वविद्यालय में गुरु-शिष्य परम्परा उत्सव का हुआ आयोजन।

दरभंगा: कामेश्वर सिंंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में गुरू पूर्णिमा के अवसर पर दरबार हॉल में गुरू-शिष्य परम्परा उत्सव का आयोजन किया गया। इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. लक्षमी निवास पांडेय ने कहा कि गुरु-शिष्य परम्परा भारतीयता के मौलिक दर्शन की नींव रही है। गुरु महान होते हैं और उनकी भूमिका भी बड़ी होती है। केवल धन अर्जन करना या फिर जीविका के साधनों की विद्या बताना ही गुरु का कार्य नहीं है। सच तो यह है कि शिष्यों या छात्रों को मनुष्य बनाना ही गुरु का परम कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ गुरु वे नहीं हैं जो केवल ज्ञानवान होते हैं बल्कि जो अपनी विद्वता व अनुभव का बेहतर लाभ शिष्यों तक पहुंचते हैं वे ही सर्वोत्तम गुरु हैं। पूर्व कुलपति प्रो. शशिनाथ झा ने कहा कि गुरु के बिना कोई भी शिक्षित नहीं हो सकता है। गुरु के कारण ही आज हम व्याकरणाचार्य हैं, कोई ज्योतिषाचार्य है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी किसी न किसी गुरु की ही देन है। उपनिषदों के हवाले से उन्होंने बताया कि गुरु देवता के समान होते हैं। गुरु अंधकार से प्रकाश की ओर लाते हैं। वे ज्ञान देते हैं। वे पूजनीय हैं। वहीं मौके पर प्रतिकुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि आज गुरु पूर्णिमा है। वेदों में ज्ञान की सम्पूर्णता ही पूर्णिमा कहलाती है और इसी ज्ञान व विद्या को जब गुरु अपने शिष्यों में उतार देता है तो वे महान हो जाते हैं। डॉ. एल सविता आर्य के संचालन में सम्पन्न कार्यक्रम में कुलगीत डॉ साधना शर्मा ने प्रस्तुत किया। डॉ. यदुवीर स्वरूप शास्त्री ने स्वागत भाषण एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अवधेश कुमार श्रोत्रिय ने किया। डीन डॉ. शिवलोचन झा के मार्गनिर्देशन तथा डॉ. सन्तोष कुमार तिवारी व डॉ. ध्रुव मिश्र के संयुक्त संयोजन में आयोजित कार्यक्रम में सभी विभागाध्यक्ष, पदाधिकारी व कर्मी उपस्थित थे। उक्त जानकारी विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क पदाधिकारी निशिकांत प्रसाद सिंह ने दी।

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