हजारों साल पुराना है बाबा पतित भारती का इतिहास, आज भी मौजूद है जिंदा समाधि स्थल।
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दरभंगा: मिथिला को सांस्कृतिक धरोहरों की भूमि कहा जाता है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत का सदैव धनी रहा है। परंतु आज भी कई ऐसे ऐतिहासिक महत्व के स्थल हैं, जो उपेक्षा के शिकार हैं। यदि इन्हें सहेजा जाय तो यह मिथिला के ऐतिहासिक विरासतों में शुमार हो सकता है।
ऐसा ही एक ऐतिहासिल स्थल मिथिला के हृदयस्थली दरभंगा जिले के बहादुरपुर प्रखंड के उसमामठ में अवस्थित है, जिसकी महत्ता के विषय में जानने वाले लोगों में इस स्थल के प्रति असीम आस्था है। यहां एक साथ कुल सोलह समाधि हैं। इस स्थल की कहानी बाबा पतित भारती के साथ जुड़ी हुई हैं जो एक तपस्वी के साथ साथ जाने माने आयुर्वेदाचार्य भी थे।
दरअसल, उसमामठ गांव में मठ नामक एक स्थान है। इसे बाबा पतित भारती का तपोभूमि बताया जाता है। इनका इतिहास ईसा पूर्व का बताया जाता है। कई लोग हजारों वर्ष पुराना भी बताते हैं। वर्तमान में यह स्थान तालाब के तट पर एक अत्यंत शांत वातावरण में अवस्थित है।
इसी आश्रम से सटे एक नदी भी है, जिसे बाबा पतित भारती के द्वारा प्रकट किया हुआ बताया जाता है। वहीं बाबा पतित भारती के मठ से जुड़ा एक और स्थान मधुवन गांव में वृक्षों से घिरा एक पूजा स्थल भी है, जिसे लोग जलजती माई स्थान के नाम से जानते हैं।
ग्रामीणों की माने तो उसमामठ में हजारों वर्ष पूर्व एक महात्मा आकर निर्जन स्थान पर रहने लगे। वे एक बड़े तपस्वी और आयुर्वेद के जानकार थे।
उस समय बाबा पतित भारती का प्रभाव मिथिला सहित पूरे भारत में फैला हुआ था। कहा जाता है कि जिस समय बाबा वहां अपनी कुटिया बनाकर निवास कर रहे थे, उस काल में दूर-दूर तक तालाब या नदी का कोई स्रोत नहीं था। इससे बाबा पतित भारती को स्नान करने में मुश्किल होती थी। इसलिए बाबा ने कमला माता से आगमन का आह्वान किया। उनके आह्वान पर कमला जी ने छपरार घाट से अपने एक जलधारा को उसमा मठ गांव की ओर प्रवाहित किया। कमला की जलधारा उसमामठ गांव के नजदीक आकर गहरी हो गई और आगे बढ़ते चली गई।
वर्तमान में भी इस नदी का स्वरूप मौजूद है। इसे लोग कटसारी नदी के नाम से भी पुकारते हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि पूरे नदी का जल सूख जाता है, लेकिन आश्रम के नजदीक जहां बाबा स्नान करते थे, वहां हमेशा जल मौजूद रहता है।
बाबा भारती के अलावा वहां मौजूद 16 समाधि स्थल इस बात की निशानी है कि बाबा पतित भारती के बाद एक के बाद एक तपस्वी यहां आते गए और यही पंचतत्व में विलीन हुए।
उसमा मठ गांव के बाबा भारती आश्रम में वर्तमान समय में एक बड़ा सा कमरा मौजूद है। इसके द्वार के समीप एक लोहे के खंती गड़ा हुआ समाधि स्थल है। इसके अगल-बगल पूरे भवन में कई समाधि स्थल है। इस जगह के बारे में लोगों के बीच मान्यता है कि बाबा आज भी जिंदा अवस्था में समाधि में है।
इस स्थल से थोड़ी दूरी पर जलजति माई का एक स्थान है। यहां एक पिंडीनुमा आकृति है। इसे लोग माता सिंघवाहिनी का पिंडी स्वरूप बताते हैं।
मधुबन गांव के लोग बताते हैं कि एक बार काशी नरेश के पीठ में एक असाध्य घाव हो गया था, जो पूरे भारत में इलाज कराने पर भी ठीक नहीं हुआ। काशी नरेश को जानकारी मिली कि मिथिला क्षेत्र में एक नामी आयुर्वेद के ज्ञाता बाबा पतित भारती रहते हैं।
काशी नरेश ने बाबा पतित भारती को अपने यहां आने का आमंत्रण भेजा। लोग बताते हैं कि बाबा भारती के पास किसी प्रकार की कोई सवारी नहीं थी, जिससे वे काशी को जाते। उन्होंने एक दीवाल पर बैठकर उसे ही चलाना शुरु कर दिया और उसी दीवाल पर बैठकर वे काशी के लिए रात्रि में विदा हो गए। जब मधुवन नामक स्थान पर पहुंचे तो उधर से मां सिंघवाहिनी आ रही थी। बाबा पतित भारती को निर्जीव दीवाल पर आगे बढ़ते हुए देखकर उन्हें माता सिंहवाहिनी ने रोका और कारण पूछा तो बाबा ने काशी नरेश के विषय मे उन्हें सारी बाते बतायीं।
इस वार्ता के दौरान बाबा पतित भारती ने उनसे आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर निवास करें। बाबा के आग्रह पर मां सिंहवाहिनी ने अपना मिट्टी का पिंडी स्वरूप वहीं प्रकट किया जो आज भी मौजूद है। बताया जाता है कि उसी समय से लोग वहां ध्वजा के रूप में बाबा पतित भारती और मां सिंहवाहिनी की पूजा करते हैं।
आज भी सावन मास में जलजति स्थान में कई गांव के लोग मन्नत मांगकर ध्वजा चढ़ाने आते हैं।
आसपास के इलाकों के लोगों के बीच मान्यता यह भी है कि यदि कोई बीमार होता है तो यहां से मिट्टी लाकर लगा देने पर उसकी बीमारी ठीक हो जाती है। दूर-दूर से भी लोग यहां आकर बाबा पतित भारती और मां जलजति से मन्नत मांगते है और वह पूरा भी होता है।
उसमामठ का यह ऐतिहासिक स्थल आज भी उपेक्षा का शिकार है। यदि इस स्थल का संरक्षण और संवर्धन किया जाय तो यह ऐतिहासिक स्थल एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो सकता है।
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