आकाश, सागर और राम-रावण युद्ध की तरह आरएसएस के कार्यो की कोई तुलना नही: भागवत।
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दरभंगा: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों की कोई तुलना नहीं है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आकाश, सागर, राम-रावण युद्ध की तुलना नहीं है। यह बात संघ प्रमुख डॉ. मोहन भगवत ने कही। वे सोमवार को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय परिसर स्थित डॉ. नागेन्द्र झा स्टेडियम में आरएसएस के नगर एकत्रीकरण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
डॉ. भागवत ने कहा कि दरभंगा के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पुरानी है। ऐसे कार्य स्वयंसेवकों ने किए भी बहुत होंगे और यहां उपस्थित लोग देखे भी बहुत होंगे। सामाजिक जीवन में भी नई-नई पीढ़ियां आती रही हैं तो बताने वालों को नए सिरे से संघ को बताना भी पड़ता है। समझने वाले को फिर से समझना भी पड़ता है। एक सामान्य प्रक्रिया समाज में चलती है। उन्होंने कहा कि संघ के लिए विशेष बात और एक है ये जो कार्य है अनोखी पद्धति से चलने वाला कार्य है और इसलिए इसको समझना है तो अधिक परिश्रम करना पड़ता है। अधिक सोचना पड़ता है। उसका अनुभव लेना पड़ता है क्योंकि जिन बातों की कोई सानी नहीं है।
श्री भागवत ने कहा कि हमको स्वयं को सुखी रखना है, कुटुंब को सुखी रखना है तो देश को सुखी रखना होगा। विदेशों में रहने वाले लोग आपको बताते होंगे कि जब भारत की प्रतिष्ठा दुनिया में बढ़ी तो वे भी वहां गौरवान्वित होते हैं। अपने-अपने अनुसार सुख का विचार सब लोग करते हैं। उस विचार के अनुसार उनको जो मिलता है वो सुख है। किसी मनुष्य को नौकर-चाकर और महल मिल जाता है तो उसमें वो सुख का विचार करता है क्योंकि उसे तो कुछ करना नहीं है। लेकिन जब इसी स्थिति में रह रहे किसी तोते से कहा जाए कि तुम पिंजड़े में आराम से हो, तुम्हें कुछ करना नहीं है तो वो कहेगा कि मुझे तो मुक्ताकाश में विहार चाहिए, तभी मैं सुखी रहूंगा।
डॉ. भागवत ने कहा कि सुख की अपनी-अपनी परिकल्पना है, उसके आधार पर लोग अपना मूल्य बनाते हैं। उन मूल्यों के आधार पर उनका धर्म बनता है। धर्म यानी स्वभाव, धर्म यानी कर्तव्य, धर्म यानी सबको साथ रखने वाला, उन्नति का मार्ग। हमारी कल्पना है कि सुख कोई बाहर की चीज नहीं है, सुख हमारे अंदर है। संतोष ही परम सुख की मान्यता हमारे यहां है। सुख संयम में है, संतोष में है। हमारे यहां मुनियों ने जीने के लिए चार मूल्य बनाए हैं-सत्य, करुणा, शुचिता और तपस्या।
उन्होंने कहा कि हमारी विविधता के बावजूद जोड़ने वाला सूत्र हिन्दुत्व है। उन्होंने कहा कि बार-बार होने वाले विदेशी आक्रमण को रोकना है तो समाज को संगठित करना पड़ेगा। संघ समाज की सेवा के लिए सबसे पहले उपस्थित रहता है।
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