वंडर एप्प को लेकर ऑनलाइन हुई बैठक, छः जिलों के पदाधिकारियों का हुआ ओरिएंटेशन।
दरभंगा: स्वास्थ्य विभाग, बिहार सरकार द्वारा बिहार के 6 जिलों में वंडर एप्प को लागू करने पर विचार किया जा रहा है। इसी कड़ी के अंतर्गत आज दरभंगा सहित गया, पटना, मुजफ्फरपुर, नालंदा एवं भागलपुर के मेडिकल कॉलेज के संबंधित विभागाध्यक्ष, सिविल सर्जन एवं प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारियों का ऑनलाइन ओरियंटेशन दरभंगा के एनआईसी से किया गया।
जिलाधिकारी डॉ. त्यागराजन ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा कि इसके लिए सर्वप्रथम गर्भवती महिलाओं की पहचान कर उनकी जांच की जाती है जिनमें भीएचएसएनडी दिवस पर आंगनबाड़ी केंद्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं की जांच होती है, प्रत्येक माह की 9 तारीख को प्रधानमंत्री मातृत्व अभियान के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं की जांच होती है तथा कैंप लगाकर भी जांच कराई जाती है और उसके उपरांत कर उनके शरीर में पाई गयी कमी के अनुसार उन्हें वर्गीकृत किया जाता है। उनका ब्लड प्रेशर, हिमोग्लोबिन, यूरिन एल्ब्यूमिन, वजन इत्यादि की जाँच की जाती है। और जांच के दौरान प्राप्त विस्तृत विवरण को वंडर एप्प पर अपलोड किया जाता है। हल्की कमी वाली गर्भवती महिला को पीला बॉक्स में तथा गभीर कमी वाली को लाल बॉक्स में रखा जाता है। उनमें हिमोग्लोबिन, आयरन या कोई अन्य कमी है,तो इसे वंडर एप्प पर अपलोड किया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक गर्भवती महिला का केस हिस्ट्री वंडर ऐप पर के माध्यम से मिल जाता है और फिर सही इलाज किया जाता है।
साथ ही किस कमी के लिए कौन सी दवा दी जानी है, किस तरह इलाज किया जाना है। यह भी जानकारी एप्प के माध्यम से दी जाती है। जैसे खून की कमी के लिए आयरन फोलिक एसिड की गोली इत्यादि। गंभीर समस्या के मामले में रेड अलर्ट तथा हल्की समस्या के मामले में येलो अलर्ट आ जाता है।
यदि किसी गर्भवती महिला को कोई गंभीर समस्या है तो वंडर एप्प के माध्यम से रेफरल अस्पताल या डीएमसीएच रेफर किया जाता है। इसके पहले उसे उस मरीज का रिपोर्ट ऑनलाइन भेज दिया जाता है। इस प्रकार 40 सेकेंड के अंदर में सारी जानकारी रेफरल अस्पताल या डीएमसीएच को मिल जाता है, जिसके कारण उस महिला मरीज को बचाने का सुनहरा अवसर उन्हें प्राप्त हो जाता है। इससे पहले डॉक्टर को पता नहीं रहता था कि मरीज का केस हिस्ट्री क्या है। लेकिन, वंडर एप्प के माध्यम से इसकी ट्रेसिंग तुरंत हो जाती है और उस गंभीर मरीज का प्राथमिकता आधारित इलाज शुरू हो जाता है। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी या संबंधित डॉक्टर को पहले से पता रहता है कि आने वाली गर्भवती महिला कौन सी बीमारी से ग्रस्त है। इस प्रकार गर्भवती महिला का इलाज शुरू से अंत तक प्रोटोकॉल के अनुसार किया जाता है। इस एप्प के कारण दवा की सुविधा, इलाज की सुविधा व एएनएम की सुविधा बेहतर हुई है।
उन्होंने कहा कि कोविड-19, कोरोना काल के पहले 60000 केस ट्रेस थे। बीच में कोरोना के कारण यह रुक गया था। लेकिन 1 नवंबर से फिर प्रारंभ किया गया है और अबतक 14000 केस का पता लगाया जा चुका है,जिनमें 33% केस में अलर्ट आए हैं। इससे रेफरल अस्पताल को उस पेशेंट के संबंध में पूरी जानकारी मिल जाती है। प्रीक्लेम्प्शिया और एक्लेम्प्शिया वाले मरीज की नियमित जांच की जाती है और उनका सही तरीके से इलाज किया जाता है। इसके उपरांत केयर के जिला समन्वयक श्रद्धा झा द्वारा पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से ऑनलाइन उपस्थित चिकित्सा पदाधिकारियों का ओरियंटेशन स्टेप बाई स्टेप किया गया।
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