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February 14, 2021

इंटैक करेगा दरभंगा और मधुबनी के दुर्लभ पांडुलिपियों संरक्षण।

दरभंगा: देश के सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण करने के लिए अग्रणी संस्था इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज (इन्टैक) द्वारा मिथिला की दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण कराया जाएगा। इंटैक दरभंगा चैप्टर के संयोजक प्रो. नवीन कुमार अग्रवाल ने बताया कि बिहार स्टेट चैप्टर के कन्वेनर एवं पूर्व वन सेवा के पदाधिकारी प्रेम शरण द्वारा ये सूचना दी गई है। प्रो. अग्रवाल ने कहा कि इसके साथ ही प्राचीन मूर्तियों की भी सूचीबद्ध कराई जाएगी। उनके अनुसार पिछले जनवरी में इंटैक के अध्यक्ष मेजर जनरल एल के गुप्ता के साथ बिहार के विभिन्न चैप्टरों के साथ हुई। बैठक में महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र एवं आजीवन सदस्य भैरव लाल दास ने मिथिला की दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण कराने तथा दरभंगा एवं मधुबनी जिले की प्राचीन मूर्तियों की सूचीकृत कराने की मांग की थी, जिसे इन्टैक के अध्यक्ष द्वारा स्वीकृति मिल गई है।

इसके लिए 15 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जायेगी। पटना चैप्टर के आजीवन सदस्य भैरव लाल दास ने बताया कि डॉ. शिव कुमार मिश्र के नेतृत्व एक टीम का गठन किया गया है। जिसमें दरभंगा चैप्टर के आजीवन सदस्य डॉ. सुशांत कुमार एवं चंद्र प्रकाश को भी रखा गया है। मिथिला में अनेक स्थानों पर दुर्लभ मूर्ति पड़ी हुई है, जिसकी कोई सूची सरकार के पास नहीं है। हमेशा चोरी की सूचना मिलती रहती है, इसे सूचीबद्ध कराने की परम आवश्यकता है।

दरभंगा चैप्टर के आजीवन सदस्य एवं महाराजधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय के संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र ने बताया कि मिथिला शोध संस्थान में करीब 12,500 पाण्डुलिपियां हैं, जबकि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में साढ़े पांच हजार पांडुलिपियों का संग्रह है। इन दोनों संस्थाओं का नियंत्रण राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के पास है। इसके संरक्षण के लिए राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से सहयोग एवं समन्वय के लिए शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के साथ एक बैठक की जायेगी। जिसके लिए प्रेम शरण द्वारा एक आवेदन प्रस्तुत किया गया है।

इन्टैक के संसाधनों द्वारा संरक्षण के बाद जो पांडुलिपियां बचेंगी, उन्हें सरकारी सहायता से करायी जाएगी। डॉ. मिश्र ने बताया कि इन सरकारी संस्थाओं के अलावा मिथिला के परंपरागत पजीकारों के घर में पंजी का अकूत भंडार है। जिसके संरक्षण के लिए पहले चरण में मधुबनी जिला के ननौर गांव के पंजीकार डॉ. जयानंद मिश्र एवं दरभंगा के संजीव कुमार पंजीकार से सहमति मिल गयी है। अधिकतर पांडुलिपि मिथिलाक्षर एवं संस्कृत भाषा में है। तालपत्र पर लिखी गई पांडुलिपि को सबसे पहले संरक्षण की आवश्यकता है। इस काम के लिए इन्टैक लखनऊ कार्यालय के दो सदस्यीय विशेषज्ञों का दल दरभंगा के पांडुलिपियों का अवलोकन कर एक विस्तृत विवरणी एवं अनुमानित लागत के लिए प्राक्कलन तैयार करेगी।

डॉ. मिश्र ने कहा कि दरभंगा मधुबनी जिले की प्राचीन मूर्तियों के सूचीकरण का काम इन्टैक की सहायता से यथाशीघ्र आरंभ की जायेगी। जिसके लिए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग से भी सहयोग लिया जाएगा।

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