लोकनायक की जयंती पर एलएनएमयू में अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का किया गया आयोजन।
दरभंगा: जयप्रकाश नारायण राजनेता नहीं वे जनता की आवाज थे। अधिकांश लोग उन्हें सिर्फ आपातकाल से जोड़कर देखते हैं। वे असल में महात्मा गांधी के सफल आंदोलन अंग्रेजों भारत छोड़ो के नायक है। आजादी से पहले के जेपी की भूमिका को नजर अंदाज कर दिया गया है। महात्मा गांधी केन्द्रीय विवि, मोतिहारी के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने जयप्रकाश नारायण की 119वीं जयंती पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित करते हुए सोमवार को ये बातें कही। वे एलएनएमयू के पीजी राजनीति विज्ञान विभाग के तत्वावधान में आयोजित जेपी और उनका प्रयोग – भारतीय लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में विषय अपना विचार रख रहे थे।
उन्होंने कहा कि जन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जेपी ने जिस तरह से अंग्रेजों का विरोध किया उसी तरह का शंखनाद आजाद मुल्क की जन विरोधी सरकार के विरुद्ध भी किया। जनहित के लिए ही जेपी ने सत्ता विरोधी रूख अख्तियार किया। सत्ता लोलुपों ने जेपी जैसे जननेताओं के योगदान को दरकिनार किया। जेपी जैसे नेताओं के योगदान से आज भी हम अपरिचित हैं। जेपी ने लोकतंत्र में जनता को निर्भीक होकर बात प्रगट करने का मंत्र दिया है। वस्तुतः जेपी मानवीय मूल्यों पर आधारित लोकतंत्रात्मक व्यवस्था के हिमायती थे।
प्रोवीसी प्रो. जी गोपाल रेड्डी ने कहा कि प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक बिहार की धरती सौभाग्यशाली रही है। जिन्होंने देश को एक से एक सपूत दिया।
आपातकाल के दौरान जेपी देश के ऐसे नेता थे जिन्होंने संपूर्ण क्रांति के माध्यम से सत्ता की ओर से थोपे गए आपातकाल का विरोध किया। समाज को एकजुट किया और तत्कालीन सरकार का विरोध किया। वर्तमान में देश के कई मुख्यमंत्री से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उनके आंदोलन के उपज रहे हैं। देश में लोकतंत्र की स्थापना में उनका अहम योगदान रहा।
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