Home Featured नगर आयुक्त की गलती की वजह से तत्कालीन की जगह वर्तमान मेयर एवं पार्षदों पर कारवाई का आरोप।
December 15, 2021

नगर आयुक्त की गलती की वजह से तत्कालीन की जगह वर्तमान मेयर एवं पार्षदों पर कारवाई का आरोप।

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दरभंगा: क्षतिग्रस्त शौचालय की बन्दोबस्ती देने एवं उसमें 27 लाख की छूट देने के मामले में दरभंगा नगर निगम की राजनीति गरमा गयी है। नगर विकास एवं आवास विभाग द्वारा मेयर, डिप्टी मेयर एवं सशक्त स्थायी समिति सात पार्षदों को पद मुक्त कर देने के एक सप्ताह बाद सभी निवर्तमान सदस्यों ने बुधवार को प्रेस वार्ता कर खुद को साजिश के तहत फँसाये जाने का आरओ लगाया है। इस दौरान उन्होंने विभाग द्वारा तथा सम्बंधित पत्राचार एवं रिपोर्ट की कॉपी भी मीडिया को उपलब्ध करवायी है।

प्रेस वार्ता के माध्यम से सदस्यों ने बताया कि नगर निगम के शौचालय बंदोबस्ती प्रकरण में उनलोगों के उपर लगाया गया आरोप सरासर निराधार, तथ्यहीन और राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित होकर हमारे स्वच्छ व ईमानदार छवि को धूमिल करने की अत्यधिक निंदनीय कुचेष्टा है। निर्गत किए गये आदेश व सभी पत्रों के अवलोकन से यह

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स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि शौचालय बंदोबस्ती मामले में की गई कार्रवाई साजिश के तहत और पूर्वाग्रह से ग्रसित है।

जांच रिपोर्ट के सम्बंध में उन्होंने कहा कि जिस जांच रिपोर्ट पत्रांक 09 न0वि0 (परि0)-44/2018-83 दिनांक 29.01.2020 के आधार पर कार्रवाई करने की बात नगर विकास विभाग की ओर से कही गई है, उस पत्र में स्पष्ट लिखा हुआ है की तत्समय के महापौर, उपमहापौर, स्थाई समिति तथा सभी सदस्यों के साथ तत्समय के नगर आयुक्त पर कार्रवाई करने हेतु उनका पत्राचार का पता भेजा जाए। परंतु तत्कालीन नगर आयुक्त ने तत्समय के महापौर, सदस्य आदि का नाम नहीं भेजकर वर्तमान महापौर, उपमहापौर तथा स्थाई समिति के सदस्यों का ही नाम- पता भेज दिया जो माँगा ही नहीं गया

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था। सरकार ने भी बिना सभी तथ्यों का संज्ञान लिए आंख मूंदकर वर्तमान महापौर, उपमहापौर और स्थाई समिति के सदस्यों पर कार्रवाई कर दी। जबकि वर्तमान महापौर, उप महापौर तथा स्थाई समिति का इस अनियमितता से कोई लेना-देना है ही नहीं।

साथ ही उन्होंने बतायाकि यह मामला वर्ष 2016-17 का है, जिस समय गौरी पासवान महापौर हुआ करते थे। उसी समय संवेदक को 27लाख 19 हजार 8 रुपयों की छूट देने का निर्णय लिया गया। तत्कालीन बोर्ड की बैठक 11.03.2017 में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया जिसमें नगर निगम के तत्कालीन महापौर, पार्षदगण तथा दरभंगा नगर विधायक संजय सरावगी आदि भी मौजूद थे। उस बैठक में महापौर गौरी पासवान को निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया गया।

बाद में पत्र के माध्यम से गौरी पासवान ने तत्कालीन नगर आयुक्त को संवेदक को 27लाख 19हजार 8 रुपये छूट देने का निर्देश भी दे दिया। नगर निगम चुनाव के उपरांत नए स्थाई समिति की बैठक 18 दिसंबर 2017 को हुई तो इस प्रकरण के निष्पादन हेतु पूर्व महापौर के आदेश का अनुमोदन करते हुए सरकार से मार्गदर्शन प्राप्त करने का निर्णय लिया गया। सरकार को इस आशय की सूचना पत्रांक 151 दिनांक 17.01.2018, पत्रांक 458 दिनांक 17.02.2018 देकर मार्गदर्शन मांगा गया। इसके पश्चात सरकार के पत्रांक 05 न0 वि0/ वि0-113/16 2798 दिनांक 22/05/2018 के द्वारा संवेदक को छूट नहीं देने का निर्देश प्राप्त हुआ।

नगर निगम ने इस पत्र के आलोक मे पत्रांक 1785 दिनांक 04.06.2018 को वसूली की कार्रवाई शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद

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सरकार की ओर से एक पत्र आया। पत्रांक 775 दिनांक 01.02.2019 जिसके माध्यम से विधि विभाग के परामर्श का उल्लेख करते हुए निर्देशित किया गया की नगर निगम की स्थाई समिति इस तरह के विवाद के निपटारे के लिए सक्षम है । फिर आगामी बैठक में 2017 में पूर्व महापौर गौरी पासवान के द्वारा लिए गये निर्णय को ही अनुमोदित कर दिया और संवेदक को उक्त राशि माफ करने की चिट्ठी निर्गत कर सरकार को इसकी सूचना दे दी गई। इस बीच सरकार से फिर पत्र प्राप्त हुआ कि संवेदक को यह छूट नहीं दी जा सकती थी । पुन: उपरोक्त पत्र के आलोक में नगर निगम ने संवेदक को राशि लौटाने के लिए पत्र लिखा। साथ ही राशि नहीं लौटाने पर नीलामपत्र दायर कर दिया गया। इस बीच वर्तमान महापौर, उपमहापौर तथा स्थाई समिति के सदस्यों को पद से मुक्त करने का हास्यास्पद निर्णय प्राप्त हुआ। इस प्रकरण का सबसे महत्वपूर्ण और विचित्र पहलू यह है की वर्ष 2017 में 11 मार्च को हुई बोर्ड की बैठक में संवेदक को छूट देने के प्रस्ताव को तत्कालीन पार्षद प्रदीप कुमार गुप्ता ने समर्थन किया साथ ही महापौर गौरी पासवान को इस विन्दु पर निर्णय लेने के लिए अधिकृत करने का प्रस्ताव रखा जिसकी स्वीकृति सर्वसम्मति से दी गई और अभी इसी बैठक में भाग लेने वाले प्रदीप कुमार गुप्ता,शंकर जायसवाल, मधुबाला सिंहा एवं अन्य पार्षदों के द्वारा आयुक्त दरभंगा प्रमंडल को दिए गए आवेदन पर ही शौचालय बंदोबस्ती में अनियमितता की जांच की गई और तत्समय के महापौर एवं सदस्यों को दोषी ठहराया गया।

प्रेस वार्ता के दौरान सदस्यों ने यह भी बताया कि वर्ष 2017 के मई माह में चुनाव होना था इसलिए उस समय बोर्ड की बैठक का कोई औचित्य ही नहीं था। यह बात इस संपूर्ण प्रकरण का अजीबोगरीब पहलू तो है ही, दोहरे चरित्र का परिचायक भी है। सरकार के द्वारा लिए गए इस अप्रत्याशित, पक्षपातपूर्ण, विसंगतियुक्त एवं विचित्र निर्णय के खिलाफ वे लोग उच्च न्यायालय की शरण में जा चुके हैं। न्यायालय पर पूरा भरोसा है।

सदस्यों ने दावे के साथ कहा है कि शौचालय बंदोबस्त प्रकरण से वर्तमान महापौर, उप महापौर, स्थाई समिति अथवा किसी भी सदस्य का कोई लेना देना नहीं हैं। हम लोगों ने जो भी निर्णय लिया वह सरकार के निर्देशानुसार ही था । इसमें जो भी अनियमितता हुई है वह वर्ष 2016-17 में रहे लोगों द्वारा की गई है जिसका अनेक साक्ष्य मीडिया बंधुओ के लिए उपलब्ध हैं।

अंत मे मीडिया से आह्वान करते हुए सदस्यों ने कहा कि आप लोकतंत्र के चौथे स्तंभ हैं साथ ही समाज में सही सूचना प्रेषित करते हैं। अतः आपसे निवेदन है कि “नीर क्षीर विवेक” से इस तथ्य को आम जन में पहुंचायें जिससे लोग वास्तविकता से परिचित हो सकें।

इस पत्रकार वार्ता में निवर्तमान मेयर बैजन्ती देवी खेड़िया, निवर्तमान उप महापौर बदरूज्जमा खान उर्फ बॉबी खान, अजय कुमार जालान, सोहन यादव, नुसरत आलम, आशा किशोर प्रजापति, सुबोध कुमार, विनोद मंडल, शिग्वतुल्लाह खान उर्फ डब्बू खान, संजू देवी ,सुदिष्ट महतो, नरेंद्र नाथ झा, जयंती देवी, ममता देवी, मुन्नी देवी, मंजुला देवी, मोहम्मद रियासत अली, उपेंद्र कुमार, इशरत प्रवीण, नुजहत परवीन, बेला देवी, ललिता देवी, निकहत परवीन, अब्दुल्लाह आदि सहित अनेक पार्षद तथा पूर्व पार्षद उपस्थित थे।

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