गुंजेश्वरी देवी का मृत शरीर मेडिकल कालेज को किया गया दान।
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दरभंगा: देहदान का अर्थ है ‘देह का दान’ अर्थात किसी उत्तम कार्य अपना जीवन ही दे देना। राजकुमार सत्त्व ने साथ सावकों को भूख से मरने से बचाने के लिए अपने शरीर का त्याग कर दिया था। दधीचि ने अपना शरीर इसलिए त्याग दिया था ताकि उनकी हड्डियों से धनुष बनाया जा सके जिससे दैत्यों का संहार हो सके।
वर्तमान समय में भी बहुत से लोग अपना देहदान मेडिकल शोध केलिए करते हैं ताकि मेडिकल छात्र शोध कर शरीर की संरचना समझ सकें और जीवित मनुष्यों का इलाज कर सकें। ऐसी ही इच्छा रखने वाली शहर के अललपट्टी स्थित इंदिरा कॉलोनी के रहने वाले स्व0 शारदा नन्द पाठक की पत्नी गुंजेश्वरी देवी का पार्थिव शरीर उनके मृत्यु उपरांत रविवार को दरभंगा मेडिकल कॉलेज को परिजनों द्वारा दान कर दिया गया।
रविवार की सुबह करीब 3 बजकर 50 मिनट पर गुंजेश्वरी देवी की मृत्यु होने के बाद उनके पुत्र चंद्रभूषण पाठक ने उनके संकल्प को पूरा करने केलिए उनका पार्थिव शरीर दरभंगा मेडिकल कॉलेज के एनाटोमी डिपार्टमेंट में पहुंच कर दान कर दिया।
इस अवसर पर श्री पाठक ने बताया कि वे संघ से जुड़े रहे हैं। साथ ही दिव्यांगों केलिए कार्य करने वाली संस्था सक्षम के उत्तर बिहार के प्रांतीय अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने बताया कि अपने माता के मृत्यु पूर्व उन्होने उनसे देहदान की अनुमति ले ली थी। उन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि उनकी माँ का शरीर जीवन के बाद भी छात्रों के अध्ययन के काम आएगा।
मौके पर मौजूद एनाटॉमी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ एसके कर्ण ने इसे सराहनीय पहल बताया। उन्होंने कहा कि मेडिकल छात्रों के अध्यन केलिए मृत शरीर काफी महत्वपूर्ण होता है। लोग जबतक जिंदा रहते हैं, काम करते रहते हैं। पर देहदान से उनका शरीर मरने के बाद भी काम आता है। उन्होंने बताया छत्रों के अध्यन के बाद शरीर का संस्कार कर दिया जाता है।
डॉ कर्ण ने आमलोगों से भी देहदान केलिए आगे आने की अपील की।
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