Home Featured सूफी संत हजरत मखदुम भीखा शाह सैलानी के दरगाह पर 373वां उर्स में नेपाल तक से जुटेंगे श्रद्धालु।
July 12, 2022

सूफी संत हजरत मखदुम भीखा शाह सैलानी के दरगाह पर 373वां उर्स में नेपाल तक से जुटेंगे श्रद्धालु।

दरभंगा: शहर के मिश्रटोला में दिग्घी तालाब के पश्चिमी तट पर स्थित प्रसिद्ध सूफी संत हजरत मखदुम भीखा शाह सैलानी के दरगाह पर 373वां उर्स बुधवार से शुरू हो रहा है। यह उर्स 17 जुलाई तक चलेगा। इस उर्स (वार्षिकोत्सव) में मिथिला के साथ अन्य जिलों व पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

प्रसिद्ध हजरत मखदुम भीखा शाह सैलानी को मानने वाले सभी धर्म-समुदाय के लोग उर्स में यहां पहुंचते हैं। यह उर्स साम्प्रदायिक सद्भाव तथा एकता को भी प्रदर्शित करता है। इस आयोजन में हिन्दू समुदाय का भी सराहनीय सहयोग हर वर्ष रहता है। यह आपसी भाईचारे की मिसाल पेश करता है। हर वर्ष की तरह दरगाहशरीफ का द्वार सुबह 5:30 बजे खुलकर रात 10 बजे बन्द होगा। इस बीच श्रद्धालु चादर चढ़ाएंगे व मन्नत मांगेंगे। इस अवसर पर विभिन्न ग्रुप्स और मुहल्लों से आकर लोग चादर चढ़ाते हैं। अंतिम दिन हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं।

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उर्स के आखरी दिन दरगाह परिसर में ही कव्वाली का भी आयोजन किया जाता है। यह तकरीबन दो घंटे की अवधि का सूफियाना होता है। अंतिम दिन दरगाह पर खादिम ए दरगाह की ओर से मजारशरीफ पर चादरपोशी की जाती है। उसी दिन सामूहिक प्रार्थना भी की जाती है। अंतिम दिन समापन के कारण श्रद्धालुओं के लिए दरगाह का द्वार 12 बजे रात तक खुला रहता है। दरगाह के खादिम शाह मोहम्मद शमीम ने मंगलवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि मदारिया सिलसिला के सूफी संत हजरत मखदुम भीखा शाह सैलानी 15 वीं शताब्दी में दरभंगा आए थे। उन्होंने दीन का पाठ पढ़ाया, इंसानियत सिखाई, आपसी भाईचारे का संदेश दिया। उनके हृदय में सभी समुदायों के प्रति समान प्रेम और पीड़ा थी। इसलिए उनके मजार पर फूल और चादर चढ़ाने वालों में हिन्दू-मुस्लिम समान रूप से दिखते हैं।

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