Home Featured संस्कृत बोलने के लिए विषय का विद्वान होना आवश्यक नहीं, वरन लगातार अभ्यास की जरूरत : डॉ० जयशंकर।
September 8, 2022

संस्कृत बोलने के लिए विषय का विद्वान होना आवश्यक नहीं, वरन लगातार अभ्यास की जरूरत : डॉ० जयशंकर।

दरभंगा: संस्कृत समृद्धि, व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक भाषा है, जिसमें उच्च राष्ट्रीय भावना व्यक्त हुई है। यह जीवंत भाषा है जो देवताओं एवं मृतात्माओं के आह्वान का एकमात्र माध्यम है। ये बातें संस्कृत विवि के पीजी वेद विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार मिश्र ने कहीं। वे गुरुवार को लनामि विवि के पीजी संस्कृत विभाग के तत्वावधान में आयोजित 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत ज्ञान-विज्ञान का स्रोत व संजीवनी विद्या है जो मानव जीवन के विकास एवं संचालन में समर्थ है। संस्कृत की वैज्ञानिकता सर्वत्र व्याप्त है। संस्कृत में जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा जाता है।

शिविर का उद्घाटन करते हुए उपकुलपति प्रथम डॉ. कामेश्वर पासवान ने कहा कि संस्कृत की आज काफी महत्ता बढ़ रही है। यदि गांव-गांव में संस्कृत की शिक्षा दी जाए तो सबका कल्याण संभव है। मुख्य वक्ता लोक भाषा प्रचार समिति, बिहार के अध्यक्ष डॉ. जयशंकर झा ने कहा कि संस्कृत बोलने के लिए विषय का विद्वान होना आवश्यक नहीं है, वरन प्रशिक्षण एवं लगातार अभ्यास की जरूरत है। संस्कृत अमृत सदृश्य है, जिसका नाश असंभव है। जब तक भारत है, तब तक संस्कृत भी रहेगी। विशिष्ट वक्ता मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. विकास सिंह ने कहा कि परंपरागत रूप में संस्कृत बोलने वाले परिवारों में बच्चे आसानी से संस्कृत सीख लेते हैं, जबकि दूसरे लोग संस्कृतमय वातावरण से ही उसे ग्रहण कर सकते हैं। कई विश्वविद्यालयों के सिलेबस में किसी न किसी रूप में संस्कृत संभाषण को लागू किया जा रहा है, जिसका लाभ छात्रों को प्राप्त होगा।

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विषय प्रवेश कराते हुए पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. जीवानंद झा ने कहा कि व्याकरण को ध्यान में न रखते हुए प्रारंभ में छात्र शुद्ध या अशुद्ध रूप में ही बोलने पर संस्कृत में अवश्य बोलें। सामाजिक परिवर्तन, राष्ट्रीय विकास एवं धार्मिक सहिष्णुता के लिए संस्कृत का प्रचार-प्रसार आवश्यक है। प्रशिक्षक अमित कुमार झा ने कहा कि इस शिविर से छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों को भी काफी लाभ होगा। शिविर में अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. मंजू राय, दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. रुद्रकांत अमर, संस्कृत विवि से सेवानिवृत्त डॉ. अमरनाथ शर्मा, प्रभात दास फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, अंग्रेजी प्राध्यापक डॉ. संकेत कुमार झा, सुधांशु शेखर, मंजू अकेला, उदय कुमार उदय, विद्यासागर भारती, योगेंद्र पासवान तथा राकेश साह आदि थे। इससे पहले मंगलाचरण संस्कृत शोधार्थी श्रवण कुमार ठाकुर ने प्रस्तुत किया। उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत विभागीय प्राध्यापक डॉ. आरएन चौरसिया व धन्यवाद ज्ञापन शिविर की संयोजिका डॉ. ममता स्नेही ने किया।

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