पग पग पोखर माछ मखान के रचयिता आचार्य सोमदेव का निधन।
दरभंगा: पग-पग पोखरि माछ मखान, सरस बोल मुसकी पान… के रचयिता आचार्य सोमदेव के निधन पर जिले में शोक की लहर दौड़ गयी है। वरिष्ठ साहित्यकार विभूति आनंद ने सोमवार को बातचीत के दौरान कहा कि 24 फरवरी 1934 को जन्मे सोमदेव ने मैथिली साहित्य में यात्री-नागार्जुन के बाद नयी ऊर्जा भरी थी।
प्रयोगवाद (कालध्वनि कविता संग्रह, जिसकी प्रख्यात भूमिका डॉ. धीरेंद्र ने लिखी थी) से शुरू होकर उन्होंने कई तरह के प्रयोग किये। पारंपरिक लोक धुनों को आधार बनाकर उन्होंने कई जनगीत लिखे, जो काफी चर्चित रहे। कविता में दोहा के साथ ही उन्होंने उपन्यास में भी अलग तरह के प्रयोग किये। उनकी लिखी ‘चरपतिया लोगों की जुबान पर अब भी है। गौरीशंकर यानी सोमदेव ने दरभंगा को अपना कार्यक्षेत्र चुना था। एक दशक तक वे अपने पुत्र के साथ सहरसा में भी रहे। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत सोमदेव ने पॉकेट बुक्स के प्रयोग को पहली बार मैथिली में लाया। उन्होंने प्रयोग के तौर पर मैथिली में ‘होटल अनारकली जैसे उपन्यास लिखे। ‘सहसमुखी चौक पर, ‘सोम पदावली, ‘चरैवेति, ‘चानोदाई जैसी उनकी किताबें चर्चित रहीं। उन्होंने यात्री-नागार्जुन की रचनाओं के साथ ही मेघदूत व नामदेव का मराठी का अनुवाद भी किया। उनकी कथा ‘भात माइल स्टोन माना जाता है। उन्होंने ‘मिथिला भूमि व ‘मिथिला टाइम्स जैसे पत्र-पत्रिकाओं का संपादन-प्रकाश भी किया। नक्सलबाड़ी आंदोलन के दौरान उन्होंने ‘अग्नि संकलन का प्रकाशन-संपादन किया था।
उन्हें ‘यात्री चेतना पुरस्कार, ‘सुभद्रा कुमारी चौहान शताब्दी पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है। दरभंगा जिले के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भीमनाथ झा ने सोमदेव के निधन पर कहा कि उनका जाना मैथिली साहित्य के लिए बहुत बड़ी क्षति है। उन्होंने अपने संरक्षण में नयी पीढ़ी को तैयार किया था। कई विधाओं में उनकी बहुमूल्य रचनाएं हैं। खासकर गांवों में होने वाले कवि सम्मेलनों में वे निश्चित रूप से शामिल होते थे। उन्होंने मैथिली की प्रख्यात पत्रिका ‘वैदेही का संपादन भी किया था।
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