डॉक्टरों और नर्सों की लड़ाई में खुली अनियमितताओं की पोल, कारवाई की जगह लीपापोती में जुटे अधीक्षक!
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दरभंगा: डीएमसीएच में जूनियर डॉक्टरों द्वारा मरीज एवं मरीज के परिजनों से मारपीट तथा विवाद की खबरें तो अक्सर सुर्खियां बनती रहती है। यहां तक कि आमजनों से विवाद होने पर दुकानों एवं गाड़ियों में आग तक लगा देने की घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है। चूंकि आमलोग और स्वास्थ्यकर्मियों के बीच विवाद रहता है, तो पूरा महकमा जूनियर डॉक्टरों के हर करतूत को छिपाने या यूं कहें कि उन्हें संरक्षण देने में लग जाता है। गम्भीर से गंभीर कांडों को अंजाम देने के बाद भी कोई ठोस कानूनी कारवाई तक उनपर नहीं होने दी जाती है।
यह सब तो डॉक्टरों का मरीज के परिजनों एवं आमलोगों से विवाद होने पर सामने आता था। परंतु हाल के दिनों में डीएमसीएच अब स्वास्थ्यकर्मियों के आपसी कलह का अड्डा बनता जा रहा है। पिछले कई दिनों से अक्सर नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर के बीच टकराव की परिस्थितियां उतपन्न हो रही है। इस टकराव में डीएमसीएच में चल रहे अनियमितताओं का खेल भी खुलकर सामने आ रहा है। विवाद का खामियाजा कहीं न कहीं गंभीर स्थिति में इलाज केलिए आये मरीज को ही भुगतना पड़ता है। सीनियर डॉक्टरों के गायब रहने की शिकायतें तो सामने आती ही हैं, अब जूनियर डॉक्टर भी सीनियर के ही नक्शेकदम पर चलते नजर आ रहे हैं।
इनसब के बीच सबसे हैरान करने वाली बात अधीक्षक की भूमिका होती है। अधीक्षक के सामने अनियमितता स्पष्ट नजर आती है और स्वीकारते भी हैं, पर विधिसम्मत कारवाई की इच्छाशक्ति उनमें नही दिखती। शिकायतों पर केवल मध्यस्थता औए लीपापोती ही करते नजर आते हैं।
मरीज अथवा मरीज के परिजन जब डॉक्टरों पर आरोप लगाते हैं तो उन्हें झुठलाने में पूरा महकमा साथ खड़ा दिखता है। परंतु अब तो इन अनियमितताओं की पोल खुद उनके महकमे के अंग अस्पताल की नर्सें ही खोल रही हैं। यहां तक कि उनके महकमे अंग नर्से ही डॉक्टरों पर अभद्रता एवं गुंडागर्दी का खुलेआम आरोप लगा रही हैं।
ड्यूटी के दौरान नर्सो के साथ अभद्रता का आरोप खुले तौर पर डॉक्टरों पर अब लगाया जा रहा है। यहां तक कि डॉक्टरों के गायब रहने के कारण मरीजों की जान जाने की बात भी नर्सो द्वारा मीडिया के सामने कही जा रही है। उन्हें खुद के साथ किसी भी अनहोनी तक कि आशंकाएं सता रही हैं। ऐसी आशंकाओं का कारण भी नर्से ही रख रही हैं। वाबजूद इसके कोई ठोस विधिसम्मत कारवाई के डीएमसीएच अधीक्षक डॉ हरिशंकर मिश्रा द्वारा अभी तक इसे मामूली विवाद कह कर लीपापोती का ही प्रयास किया जा रहा है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि अधीक्षक को विधिसम्मत ठोस कारवाई करने में किसका डर है! अथवा अधीक्षक की ऐसी कौन सी मजबूरी है जो डॉक्टरों पर आरोप लगने पर उन्हें केवल लीपापोती ही करनी पड़ती है! सवाल यह भी उठता है कि वास्तव में यह अधीक्षक की मजबूरी है या मिलीभगत! अगर मिलीभगत नहीं है तो फिर उनमें कारवाई की इच्छाशक्ति दिखाई क्यों नही देती! क्या अधीक्षक का कर्तव्य केवल अपने मातहतों को संरक्षण देना ही है? क्या मर्यादा तोड़ने पर विधिसम्म्मत कारवाई उनका कर्तव्य नहीं है!
सवाल तो अब बहुत सारे उठने लगे हैं और इसके उदाहरण भी कई हैं। फिलहाल ताजा मामले में शुक्रवार की रात डॉक्टरों और नर्सो के बीच हुए नोकझोंक को लेकर शनिवार को नर्सो ने डीएमसीएच अधीक्षक से मुलाकात की। इस दौरान जो आरोप नर्सो द्वारा लगाए गए हैं, वह काफी गम्भीर है। नर्सो को पर्सनल फोन से कॉल करने पर उन्हें ब्लेंक कॉल आता है और वे परेशान रहती हैं। वे अपरोक्ष रूप से कैमरा के सामने खुद स्वीकारती नजर आयी कि डॉक्टरों के गायब रहने के कारण मरीज की मौत भी होती है।
इन सबके अलावा वे डॉक्टरों से खुद के जान का खतरा तक बताती हैं। उनका कहना है कि यदि वे सच को सामने लाती हैं तो उनकी हत्या तक हो सकती है। साथ ही रात को अकेले वार्ड में ड्यूटी करने में भी डर लगता है। डॉक्टरों के व्यवहार को देखते हुए उन्हें यह भी डर सता रहा है कि उनके साथ किसी प्रकार की अनहोनी को भी अंजाम दिया जा सकता है।
सारी बातें शनिवार को अधीक्षक डॉ. हरिशंकर मिश्रा के समक्ष आने के बाद अधीक्षक ने दोनों पक्षों को मरीज हित में सौहार्दपूर्ण वातावरण में काम करने की सलाह दी। परंतु इन गंभीर आरोपों के बाबजूद किसी ठोस विधिसम्म्मत कारवाई की बात तक उनके द्वारा नहीं की गयी!
गौरतलब है कि कुछ दिनों पूर्व इमरजेंसी विभाग में भी ईएनटी विभाग के चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ के बीच नोकझोंक हुई थी।
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