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December 25, 2022

विद्यापति सेवा संस्थान ने मनाया पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी का जन्म दिवस।

दरभंगा: कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनका परिचय देने में किसी विशेष पहचान की आवश्यकता नहीं होती। ना ही, उन्हें शब्दों में बांधा जा सकता। वे भाषा, साहित्य, स्वर एवं कविता से परे होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व उन्हीं में से एक था। ये बातें विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने रविवार को भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 98 वें जन्म दिवस के अवसर पर संस्थान के तत्वावधान में आयोजित जन्मदिवस समारोह में कही। उन्होंने कहा कि राजनेता अटल बिहारी का मानवीय चेतना संपन्न व्यक्तित्व काव्य जगत की ओर से राजनीति को दिया गया एक अनमोल उपहार था। नाम के अनुरूप विकट आंधी-तूफान जन्य परिस्थितियों से जूझ कर देश की मान-प्रतिष्ठा तथा संस्कृति के रक्षक भारत मां के इस सपूत पर समस्त भारतवासियों को आज भी गर्व है।

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 मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो रमेश झा ने मिथिला मैथिली के विकास में स्व वाजपेयी के योगदानों की विस्तार से चर्चा करते हुए उन्हें मिथिला-मैथिली का सच्चा हितैषी बताया। उन्होंने कहा कि अटल जी की सरकार ने करोड़ों मिथिलावासी के माँ की भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर गौरवशाली उपहार प्रदान किया। अपने संबोधन में उन्होंने अटल के सपनों का मिथिला बनाने के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन को जरूरी बताया।

 प्रो विनय झा ने वाजपेई को श्रद्धा सुमन अर्पित करते कहा कि वास्तव में सागर की गहराइयों में हिलोरें लेने वाला, आकाश की ऊंचाइयों को छू लेने वाला अटलजी का बहुआयामी व्यक्तित्व एक साथ कवि, लेखक, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ सरीखे विविध आयामों को अपने में समेटे शोभायमान था।

 प्रो सच्चिदानंद चौधरी ने स्व वाजपेयी को भारतीय दर्शन एवं सांस्कृतिक चेतना को समर्पित व्यक्तित्व बताते हुए मिथिला को सब कुछ देने की चाहत रखने वाला महान व्यक्ति बताया। 

अध्यक्षीय संबोधन में पं कमलाकांत झा ने कहा कि अनेकता में एकता का संगम अटल जी के व्यक्तित्व की पहचान थी। इनके व्यक्तित्व में कभी उनका कवि रूप मुखरित हो उठता, तो कभी दार्शनिक रूप। कभी कठोर अनुशासन प्रिय शिक्षक के रूप में दिखते, तो कभी आज्ञाकारी कर्तव्य परायण छात्र के रूप में। एक योग्य राजनीतिज्ञ होने का प्रमाण उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ सरीखे खिताबों से मिल चुका था। यही कारण था कि उम्र के लंबे दहलीज पर पहुंचने के बाद भी उनका सफर समाप्त नहीं हुआ। उनके व्यक्तित्व का निखार कभी थमने का नाम नहीं लिया। वह निरंतर नए-नए रूप बदलकर, नए-नए लक्ष्य लेकर विकास की ओर उस झरने की तरह बढ़ते रहे, जिसका उद्देश्य था-

‘चलना है केवल चलना, जीवन चलता ही रहता है!

रुक जाना ही मर जाना है, निर्झर यह झर झर कहता है!!’

समारोह में रामाज्ञा झा, भरत, मो मंसूर, अनिल यादव, जीवछ यादव, मोहन राम, नन्द कुमार झा, आशीष चौधरी, पुरुषोत्तम वत्स आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

उधर, 20वें अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन में भाग लेने गये प्रतिनिधियों ने तिरूपति (आन्ध्र प्रदेश) में वरिष्ठ कवि डॉ जयप्रकाश चौधरी जनक की अध्यक्षता में वाजपेयी का जन्मदिवस मनाया। प्रतिनिधियों ने स्व वाजपेयी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें भावपूर्ण नमन किया। मौके पर मणिकांत झा ने कहा कि छोटी सी अवधि में ही उन्होंने देश के नाम व मिथिला की मान के लिए जो कार्य किए, इतिहास में निर्विवाद रूप से स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। वरिष्ठ साहित्यकार डा महेंद्र नारायण राम ने कहा कि अटलजी का बहुआयामी व्यक्तित्व एक साथ कवि, लेखक, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ सरीखे विविध आयामों को अपने में समेटे शोभायमान था।

प्रो जीवकांत मिश्र ने स्व वाजपेयी को भारतीय दर्शन एवं सांस्कृतिक चेतना को समर्पित व्यक्तित्व बताते हुए मिथिला को सब कुछ देने की चाहत रखने वाला महान व्यक्ति बताया। डा सुषमा झा ने संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के दो दशक बाद भी मैथिली भाषा में प्राथमिक शिक्षा नहीं शुरू होने पर चिंता जाहिर की। प्रो विजय कांत झा ने अपने संबोधन में मैथिली को राज-काज की भाषा बनाये जाने पर बल दिया।

जन्मदिवस समारोह का संचालन करते हुए संस्थान के मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने संस्थान के तत्वावधान में तिरूपति में मिथिला के लोगों द्वारा मनाये जा रहे कार्यक्रम को अभूतपूर्व संयोग बताते कहा कि अनेकता में एकता का संगम, अटल जी राष्ट्रवाद का अलख जगाने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे। अध्यक्षीय वक्तव्य में डा जनक ने उन्हें राजनीति का मर्यादा पुरुषोत्तम बताते कहा कि सत्ता के खेल में राष्ट्रीय एकता का बिखराव उन्हें कतई पसंद नहीं था। कार्यक्रम में नवल किशोर झा, दुर्गा नन्द झा, प्रेम कुमार झा, गौरी देवी, कल्पना प्रवीण, संतोष कुमार झा, पूनम झा, मीना देवी, नवीना देवी आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

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