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January 25, 2019

संस्कृत विश्वविद्यालय में चार दिवसीय स्थापना दिवस समारोह की हुई शुरूआत।

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दरभंगा : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में शुरू चार दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने दरबार हॉल में कहा कि क्विज प्रतियोगिता से छात्रों की न सिर्फ तार्किक क्षमता का विकास होता है, बल्कि किसी खास बिंदु या विषय पर सुस्पष्ट विचार व्यक्त करने का भी सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। बेशक ऐसी प्रतियोगिता प्रतिभागियों को हुनर प्रदर्शित करने का प्लेटफॉर्म भी प्रदान करती है। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि जिन मूल्यों व आदर्शों के लिए किसी संस्था की स्थापना होती है, उसी से जुड़कर संकल्प लेने की प्रक्रिया ही स्थापना दिवस है। यह दिवस मूल जड़ों से भी जोड़ता है। संस्कृत विश्वविद्यालय आज सभी क्षेत्रों में मजबूत स्थिति में है। उम्मीद करते हैं कि आगामी स्थापना दिवस तक और कई अमिट उपलब्धियां इसके नाम जुड़ जाएंगी। उन्होंने कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा के जज्बे व कार्यों की प्रशंसा की। संस्कृत संभाषण को लेकर वीसी प्रो. सिंह ने कहा कि इससे समरसता आती है और साथ ही सामूहिक विचार-विमर्श के बाद सभी एक स्पष्ट निर्णय या परिणाम पर आते हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि संस्कृत विश्वविद्यालय जल्द ही बुलंदियों के शिखर पर होगा। उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि इसके पहले कार्यक्रम के अध्यक्ष संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने उन्हें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की थीम पर बनी मिथिला पेंटिंग भेंट की और पाग चादर से उन्हें सम्मानित भी किया। कुलपति प्रो. झा ने प्रतिकुलपति प्रो. चन्द्रेश्वर प्रसाद सिंह को सम्मानित किया। डॉ. शिवलोचन झा के मंच संचालन में कुलानुशासक प्रो. सुरेश्वर झा ने विश्वविद्यालय की स्थापना के समय की विस्तार से चर्चा की और महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह के साथ डॉ. जाकिर हुसैन व डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित की। वीसी प्रो. झा एवम प्रोवीसी प्रो. सिंह ने महाराजा की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया। इस मौके पर वेद, व्याकरण, साहित्य व ज्योतिष के अलग-अलग विषयों पर शास्त्रीय संभाषण प्रतियोगिता भी आयोजित की गई। सभी विषयों में तीन-तीन छात्रों को पुरस्कृत किया गया। निर्णायक मंडल में प्रो. शशिनाथ झा, प्रो. सुरेश्वर झा व प्रो. विद्येश्वर झा शामिल थे।

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