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September 9, 2021

साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र की जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन।

दरभंगा: साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र की जयंती पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय हिंदी विभाग की ओर से गुरुवार को संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र साह ने कहा कि विचारों के आदान-प्रदान से हर किसी की समझ बढ़ती है। उन्होंने कहा कि नवजागरण के अग्रदूत तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के ऐसे ज्वाजल्यमान नक्षत्र हैं जिनसे समग्र हिंदी साहित्य प्रोद्भासित है। वस्तुत: भारतेन्दु का ही नहीं, बल्कि हर व्यक्ति का जीवन अंतर्विरोधों के बीच से गुजरता है।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति कई स्तरों पर जीता है और यही भारतेंदु की साहित्यिक यात्रा में भी दिखता है। उन्होंने कहा कि जिस समय भारतेंदु का आगमन हुआ उस समय भाषा पर दो स्तरों पर बहस चल रही थी। राजा लक्ष्मण सिंह जहां संस्कृतनिष्ठ भाषा के समर्थक थे वहीं राजा शिवप्रसाद सिंह सितारे हिंद उर्दू मिश्रित हिंदी भाषा के पैरोकार थे। ऐसे समय में भारतेंदु ने मध्यम मार्ग अपनाया और आम बोलचाल की भाषा को साहित्य में स्थान दिया। उन्होंने कहा कि गद्य में जहां उन्होंने खड़ी बोली को स्थापित किया वहीं गीतों और कविताओं में मधुर ब्रजभाषा को भी नए कलेवर में ढाला। उन्होंने उनके नाटकों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जनता का सीधा जुड़ाव नाटकों से होता है। वे न केवल नाटक लेखक थे बल्कि वे नाट्य समीक्षक, नाट्य अभिनेता और कुशल नाट्य निर्देशक भी थे।

उन्हें जनसामान्य और उस दौर के बड़े साहित्यकारों द्वारा भारतेंदु की उपाधि दी गयी। हिंदी विभाग के सह प्राचार्य डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में एक से बढ़कर एक हीरे-जवाहरात पैदा हुए। भारतेंदु का जन्म भी बनारस में हुआ। विभाग के ही सह प्राचार्य डॉ. आनन्द प्रकाश गुप्ता ने कहा कि आधुनिक हिंदी के जन्मदाता के रूप में भारतेंदु हरिश्चंद्र को याद किया जाता है। हिंदी-विभाग के सहायक प्राचार्य डॉ. अखिलेश कुमार ने इस अवसर पर कहा कि भारतेंदु आधुनिकता के पितामह और नवजागरण के अग्रदूत थे। उन्होंने कहा कि भारतेंदु ने रीतिकालीन विलासिता से हिंदी साहित्य को निकालकर गम्भीरता से जोड़ा। सीएम कॉलेज के सहायक प्राचार्य अखिलेश कुमार राठौर ने कहा कि हमें जो भाषिक अभिव्यक्ति की आजादी मिली वह भारतेंदु की वजह से मिली है।

‘गोदान’ और ‘अंधेर नगरी’ की तुलना करते हुए उन्होंने भारतेंदु को मार्क्सवादी नहीं बल्कि राष्ट्रवादी बताया। ललित नारायण जनता महाविद्यालय, झंझारपुर के सहायक प्राचार्य चन्द्रशेखर आजाद ने कहा कि भारतेंदु आधुनिक युग के पितामह हैं। उन्होंने कहा कि वे एक उत्कृष्ट कवि, पत्रकार, व्यंग्यकार, नाटककार, सम्पादक के रूप में याद किये जाते हैं। शोधप्रज्ञ कृष्णा अनुराग, धर्मेन्द्र दास, समीर कुमार आदि ने भी विचार रखे। धन्यवाद ज्ञापन शोधप्रज्ञ अभिषेक कुमार सिन्हा ने किया।

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