Home Featured विशेष आलेख: कौन और कैसे जीतेगा दरभंगा का दंगल!
April 10, 2019

विशेष आलेख: कौन और कैसे जीतेगा दरभंगा का दंगल!

दरभंगा। अभिषेक कुमार
लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। मिथिलांचल की हृदयस्थली होने के कारण दरभंगा हमेशा से एक महत्त्वपूर्ण सीट माना जाता है। भाजपा और राजद, दोनो इसे गढ़ मानते हैं और हर हाल में यहां कब्जा जमाने का प्रयास करते हैं। लोकसभा केलिए एनडीए के तरफ से जहां भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष गोपालजी ठाकुर को उम्मीदवार बनाया गया है, वहीं तमान खींचतान एवं हाई वोल्टेज ड्रामा आदि के बाद महागठबन्धन की तरफ राजद के कद्दावर नेता अलीनगर के विधायक अब्दुल बारी सिद्दीकी को उम्मीदवार बनाया गया है।
सर्वविदित है कि बिहार में चुनाव में जातीय समीकरण हमेशा से असर दिखाते हैं। परंतु 2014 के मोदी लहर ने कहीं न कहीं इन समीकरणों पर भारी पड़ते हुए भाजपा के उम्मीदवार कीर्ति आजाद के जीत का मार्ग प्रशस्त किया था। उन्होंने राजद के पूर्व सांसद मो0 अली अशरफ फातमी को पराजित किया था। तीसरे नम्बर पर जदयू के संजय झा रहे थे। परंतु संयोगवश पिछले चुनाव के विजेता कीर्ति आजाद सहित दूसरे एवं तीसरे नम्बर पर रहने वाले तीनो उम्मीदवार इसबार मैदान से बाहर हैं।
यदि समीकरणों की बात की जाय तो महागठबन्धन उम्मीदवार अब्दुल बारी सिद्दीकी को राजद के माय समीकरण का लाभ मिलने के अलावा अलीनगर, गौरबौराम एवं बेनीपुर विधानसभा में ब्राह्मण मतदाताओं पर भी अच्छी पकड़ मानी जाती है। और इसी लोकप्रियता के कारण सात बार विधायक रह चुके हैं। इस लिहाज से इनका समीकरण कहीं न कहीं इसबार ज्यादा प्रबल प्रतीत होता नजर आता है। परंतु राजद के वरिष्ठ नेता अली अशरफ फातमी का टिकट नही मिलने पर नाराजगी जगजाहिर हो चुका है। सिद्दीकी के नामांकन में भी खेमेबाजी स्पष्ट नजर आयी और फातमी समर्थक दूरी बनाये रहे। इस लिहाज से भीतरघात की संभावना भी प्रबल है जो श्री सिद्दीकी के राह का बड़ा रोड़ा बन सकता है।
इसपर सिद्दीकी समर्थकों की माने तो वे विरोध या भीतरघात होने की संभावना को सिरे से खारिज करते हुए नजर आते हैं। उनका तर्क है कि फातमी जी को सात बार पार्टी ने मौका दिया। उनके पुत्र को विधायक बनाया गया। ऐसे में यदि फातमी विरोध करते हैं तो उन्हें हासिल कुछ नही होगा, उल्टे उनके साथ साथ उनके पुत्र का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लग जायेगा। अतः अंततः उन्हें मना लिया जाएगा औए अंतर विरोध नही होगा।
ऐसे में इन बातों का ध्यान रखकर भी फातमी यदि खुले तौर पर विरोध नही भी करते तो भी कभी समर्थन नही करना चाहेंगे क्योंकि यदि सिद्दीकी सांसद बने तो दरभंगा राजद का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले फातमी का राजनीतिक कद कहीं छोटा पड़ जायेगा। और राजनीति में वरिष्ठ नेता अपना कद बनाये रखने केलिए पार्टी की जीत हार को ताक पर रख दें तो अतिशयोक्ति नही होगी।
दूसरी तरफ बात गोपालजी ठाकुर की करें तो दरभंगा भाजपा की जीती हुई सीट है। भाजपा ने पहली बार स्थानीय कार्यकर्ता को तरजीह देते हुए टिकट दिया है जिससे सामान्य कार्यकर्ताओं में उत्साह भी है। गोपालजी ठाकुर का मजबूत पक्ष उनका सामान्य रहन सहन एवं जमीनी कार्यकर्ताओं पर पकड़ भी माना जाता है। हालांकि खेमेबाजी और अंतर्विरोध यहां भी कुछ कम नही है। यह अलग बात है कि अली अशरफ फातमी के कारण महागठबन्धन का अंतर्कलह चुनाव पूर्व सार्वजनिक रूप से सतह पर आ गया जबकि भाजपा में अभी तक असंतोष की भावना भीतरघात तक ही इशारा करती है। एनडीए में भाजपा का भी एक खेमा संजय झा केलिए प्रयासरत था एवं गोपालजी ठाकुर से उनकी नाराजगी चल रही थी। भाजपा के कुछ बड़े नेता से लेकर कार्यकर्ता तक भी खुलकर संजय झा से नजदीकी दिखा रहे थे। भाजपा के इन दोनों खेमे के समर्थक भी चुनावी रेस के दौरान आपस मे फेसबुक पर युद्ध करते नजर आ जाते थे। परंतु संजय झा को टिकट नही मिलने पर वह खेमा मायूस नजर आया। कहीं न कहीं गोपालजी ठाकुर की स्वीकार्यता में अभी भी उन्हें तकलीफ होती नजर आती है। पर ऐसे नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने अंत मे अस्तित्व बचाने केलिए गोपालजी के शरण मे जाना ही उचित समझा।
परंतु पार्टी सूत्रों की माने तो उन्हें झुककर जाने के वाबजूद शायद गोपालजी ठाकुर द्वारा उन्हें तरजीह न देकर किनारा करना खल रहा है। कुछ स्थानीय नेता जो हमेशा उनके आसपास रहने वाले समर्थक माने जाते हैं, चुनाव कैम्पेनिंग के दौरान नीतिगत कार्यो में उनपर विश्वास न जता कर पार्टी में भी अपने रिश्तेदारों एवं मित्रों को तरजीह देना नजदीकी कार्यकर्ताओं के मनोभाव को तोड़ रहा है।
बिहार भाजपा में गोपालजी ठाकुर प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय खेमा के माने जाते हैं। जबकि एक अन्य खेमा सुशील मोदी का है जिस खेमे से विधायक संजय सरावगी माने जाते हैं। दरभंगा में संजय सरावगी चार बार विधायक बन चुके हैं। दरभंगा में कोई स्थानीय कद्दावर चेहरा पार्टी में नही होना और कीर्ति आजाद के निलंबित होने के बाद संजय सरावगी दरभंगा भाजपा के सबसे बड़े चेहरे के रूप में स्थापित हो चुके थे। ऐसे में यदि गोपालजी ठाकुर सांसद बनते हैं तो निश्चित रूप से उनका कद संजय सरावगी से बड़ा होगा। राजनीति में इस अहं की लड़ाई भी कम नही मानी जाती।
अब बात समीकरणों की जाय तो तो दरभंगा लोकसभा की कुल छह विधानसभाओं में से दरभंगा नगर से गोपालजी ठाकुर को लीड मिलने की उम्मीद है। इस लीड को श्री सिद्दीकी द्वारा अलीनगर एवं गौराबौराम से मैनेज कर लिया जा सकता है। बेनीपुर में मुकाबला बराबरी का रहने की उम्मीद की जा रही है। दरभंगा ग्रामीण से अब्दुल बारी सिद्दीकी को लीड मिलने की उम्मीद है। ऐसे में बहादुरपुर विधानसभा में लीड लेना निर्णायक होने की संभावना है।
समीकरणों की बात की जाय तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है और अब्दुल बारी सिद्दीकी समीकरणों को साधने का पूरा प्रयास करते दिख सकते हैं। जबकि गोपालजी ठाकुर केलिए समीकरण पर जीतना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसलिए वे नरेंद्र मोदी के चेहरे एवं कार्यो के साथ साथ भाजपा के परंपरागत स्लोगन बन चुके राष्ट्रवाद, सर्जिकल स्ट्राइक, आतंकवाद पर प्रहार आदि भावनात्मक मुद्दों पर जनता का ध्यान केंद्रित करते नजर आ सकते हैं। क्योंकि गोपालजी की जीत भी तभी सुनिश्चित हो सकती है जब वे क्षेत्रीय समीकरण एवं मुद्दों के बदले राष्ट्रीय मद्दों पर जनता का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब हो जाएं। यदि ऐसा नही होता है तो उनकी राह भी कम मुश्किल नही है। एकतरफ जहां अली अशरफ फातमी सिद्दीकी से किनारा किये नजर आ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ गोपालजी ठाकुर संजय झा से किनारा करते दिखे हैं।
फिलहाल उपरोक्त सभी कयास वर्तमान के परिदृश्यों को देखते हुए लगाये जा सकते हैं। परंतु चुनाव के समय अंतिम समय तक कई उतार चढ़ाव एवं समीकरणों में बदलाव आते रहते हैं। ऐसे में अंतिम स्थिति की परिकल्पना का वर्तमान की परिस्थितियों से करना सहज नही हो सकता। परंतु वर्तमान परिदृश्य इतना दृश्य तो अवश्य सामने दिखा रहा है कि कहीं न कहीं कुछ कसक दोनो तरफ है और गुटबाजी का शिकार दोनो ही तरफ होने की संभावना से इनकार नही किया जा सकता।

(आलेख क्रमशः जारी….)

Share

Check Also

पुलिस की दबिश बढ़ता देख गैंग रेप के आरोपी ने न्यायालय में किया आत्मसमर्पण।

दरभंगा: जिले के बड़गांव थाना क्षेत्र के एक गांव की 13 साल की नाबालिग के साथ नशीली पदार्थ प…