Home Featured शिक्षण रोजगार नहीं,बल्कि आंतरिक अनुभूति है:डॉ मुश्ताक
June 12, 2019

शिक्षण रोजगार नहीं,बल्कि आंतरिक अनुभूति है:डॉ मुश्ताक

दरभंगा:नई शिक्षा नीति-2019 में प्राथमिक शिक्षा पर जोर* शिक्षा वृत्ति रोजगार नहीं,बल्कि आंतरिक अनुभूति है।छात्र पहले लायक बने,फिर उसकी ख्वाहिश करें।नई शिक्षा नीति- 2019 को कुछ संशोधनों के साथ यदि लागू किया जाता है तो शिक्षा के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन आएगा।यह छात्रहित तथा राष्ट्रहित में है। उक्त बातें सी एम कॉलेज,दरभंगा के प्रधानाचार्य डा मुश्ताक अहमद ने सेमिनार हॉल में *राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रारूप- 2019* पर महाविद्यालय के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग तथा भारतीय मनोवैज्ञानिक संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए कहा।उन्होंने कहा कि प्रारंभिक शिक्षा की रीउ टूट चुकी है।जब तक उसे सुदृढ़ नहीं किया जाएगा, तब तक भारत में शिक्षा-व्यवस्था पटरी पर नहीं आ सकती। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त किया कि 2015 में नई शिक्षा नीति के लिए भेजे गए मेरे सुझाव में से 80 ℅ से अधिक को प्रारूप में शामिल किया गया है। नई शिक्षा नीति में बच्चों के बस्तों के बोझ कम किए गए हैं तथा व्यवहारिक शिक्षा पर जोर दिया गया है। प्रारूप में अच्छे शिक्षकों को तैयार करने पर बल दिया गया है यद्यपि प्रारूप में इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात नहीं की गई है।
मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय मनोवैज्ञानिक संघ के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर तारणी जी ने कहा कि छात्रों को सिर्फ डिग्री ही न मिले,बल्कि उनका बौद्धिक विकास भी हो।नए प्रारूप में शिक्षक को छात्रों के लिए अधिक लाभकारी बनाने की बात है, ताकि शिक्षा से छात्रों के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास हो सके।नई शिक्षा नीति में B.Ed कोर्स 4 वर्षों का होगा। अच्छी लगन,कड़ी मेहनत से ही लोग शिक्षक बनेंगे,जिनमें कर्तव्यबोध होगा तथा वे छात्रों का उत्थान नियमित रूप से कर पाएंगे।हम लोगों को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति हेतु सरकार को अच्छे सुझाव देने चाहिए।
विशिष्ट अतिथि के रुप में कॉमर्स कॉलेज,पटना के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग के प्राध्यापक प्रोफेसर जय मंगल देव ने कहा कि यद्यपि राष्ट्रीय नीति पर विवाद जारी है,परंतु इसके मार्फत भारत में शिक्षा का स्वरूप पूरी तरह बदलने की योजना है। इसमें समानता, गुणवत्तापूर्ण उत्तम शिक्षा, सबों के पहुंच में शिक्षा तथा इसमें संलग्न व्यक्तियों की जिम्मेवारी तय की जाएगी। प्रारूप में भारतीय मेधा के योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। प्रारूप का उद्देश्य भारतीय शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना है।इसके लागू होने से भारत में शिक्षा का चेहरा पूरी तरह बदल जाएगा।
मुख्य वक्ता के रूप में स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ ध्रुव कुमार ने कहा कि नई शिक्षा नीति के लागू होने से छात्रों का कौशल विकास अधिक होगा।छात्र परंपरागत पाठ्यक्रम के साथ ही वोकेशनल कोर्स भी पढेंगे। अभी भारत में शिक्षा पर कुल डीजीपी का मात्र 2% व्यय होता है,जिसे बढ़ाकर 4% करने की योजना है। विश्वविद्यालय के पूर्व एनएसएस पदाधिकारी डॉ आरएन चौरसिया ने कहा कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता कम होती जा रही है,क्योंकि इसमें अनेक खामियां हैं तथा यह समय सापेक्ष भी नहीं है।नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा फार्मूले की चर्चा है,जिसकी आज ज़रूरत है। वस्तुतः शिक्षा में गुणात्मक सुधार तभी हो सकता है,जब उसकी खामियों को दूर कर व्यावहारिक प्रावधान किए जाएंगे। शिक्षा मानवीय मूल्य युक्त रोजगारोन्मुख हो। यह सिर्फ आदर्श सिद्धांत रूप में न होकर व्यवहारिक रूप में होना चाहिए।स्कूल,कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को तार्किक, वैज्ञानिक तथा रोजगारोन्मुख बनाने की नई शिक्षा नीति में जरूरत है।
इस अवसर पर अतिथियों द्वारा भारतीय मनोवैज्ञानिक संघ की शोध पत्रिका का विमोचन किया।
आगत अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष डॉ नथुनी यादव ने किया स्वागतगान मधु कुमारी, खुशबू तथा कीर्ति कुमारी ने किया,जबकि प्रोफेसर अमृत कुमार झा के संचालन में आयोजित सेमिनार में आई क्यू ए सी के कोऑर्डिनेटर डॉ जिया हैदर ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

Share

Check Also

पुलिस की दबिश बढ़ता देख गैंग रेप के आरोपी ने न्यायालय में किया आत्मसमर्पण।

दरभंगा: जिले के बड़गांव थाना क्षेत्र के एक गांव की 13 साल की नाबालिग के साथ नशीली पदार्थ प…