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July 23, 2019

जमीनी कार्यकर्ता से सांसद का सफर करने के कारण गोपालजी हैं लोगों की अत्याधिक अपेक्षा का शिकार!

दरभंगा। अभिषेक कुमार
सामान्य तौर पर लोगों ने जनप्रतिनिधियों से विशेष अपेक्षा रखना छोड़ दिया क्योंकि कहीं न कहीं बड़े जनप्रतिनिधि यथा विधायक-सांसद आदि जमीनी कम और धन-बल के आधार पर टिकट प्राप्त कर जीत जाते हैं। ऐसे जनप्रतिनिधि जनभावना का ख्याल कम ही रखते हैं।
ऐसे में दरभंगा में प्रमुख राष्ट्रीय दल भाजपा ने पहली बार स्थानीय और जमीनी कार्यकर्ता से प्रदेश उपाध्यक्ष तक का सफर करने वाले गोपालजी ठाकुर को सांसद का टिकट दिया तो विरोधी दलों के लोगो की जुबान पर भी यह बात जरूर आयी कि भाजपा ने जमीनी कार्यकर्ता को टिकट दिया है। गोपालजी ठाकुर की छवि मृदुलभाषी एवं मिलनसार नेता के रूप में जानी जाती है। लोगो को लगा कि अगर गोपालजी ठाकुर सांसद बनते तो वे एयरकंडीशन में कैद रहने वाले नही, बल्कि लोगों के बीच रहेंगे। हर किसी को उम्मीद थी कि ये रूआब वाले नही, हर किसी की पहुँच में रहने वाले नेता हैं। जो चाहे, जब चाहे, सुख दुःख में उनसे मिल सकता है, बात कर सकता है। इस प्रकार जनप्रतिनिधियों के प्रति आमजनों की खत्म होती जा रही आमजनों की उम्मीदों को अचानक नया जीवन सा दिखा गोपालजी ठाकुर में। और गोपालजी के जीत के साथ ही उनके इन्ही सरल व्यक्तित्व के कारण इनपर अचानक जन अपेक्षा का भार कई गुणा बढ़ गया। और यही कारण रहा कि बाढ़ के दौरान अपेक्षित लोग भी संसद सत्र आदि की भी कोई तकनीकी समस्या सुनने को तैयार नही दिखे और सांसद को अपने बीच देखने को बेताब दिखे।
वहीं सांसद के रूप में सत्र के दौरान क्षेत्र के लंबित मांगों को सदन में रखने सहित बाढ़ के स्थायी समाधन की मांग को सदन में रखने में गोपालजी ठाकुर प्रतिबद्ध दिखे। बाढ़ की आशंका को देखते ही दरभंगा के जिलाधिकारी डॉ0 त्यागराजन एमएस ने समय रहते सुरक्षात्मक एवं राहत कार्यो की तैयारी पूरी तत्परता से करते नजर आये। इसकी जानकारी मीडिया श्रोत एवं अन्य स्रोतों से भी सांसद श्री ठाकुर लेते रहे। सांसद के रूप में सदन में उन्होंने बाढ़ की समस्या को रखने केलिए अपनी बारी का इंतजार आने केलिए सदन में उक्त दिन सात घण्टे से अधिक इंतजार किया तो उन्हें मौका मिला।
कुल मिलाकर कहा जाय तो गोपालजी ठाकुर जीतने के ठीक बाद पहले ही सत्र में सदन के पटल पर सांसद के रूप में पूरी तत्परता दिखाते नजर आये। पर इस कर्तव्य को पूरा करने में जमीनी कार्यकर्ता और दरभंगा के बेटा के रूप में त्रासदी के दौरान सशरीर अपने क्षेत्र में पीड़ितों के बीच नजर आने में कमी कर गए।
यह भी सत्य है कि दोनों कर्तव्यों का निर्वहन एकसाथ पूरा करना कहीं न कहीं बहुत ही मुश्किल कार्य था, परन्तु अपेक्षित लोग भी इसे समझ नही पाये, और दुखी मन से भवना का परिचय देने लगे, इसमे सबसे बड़ा हाथ गोपालजी ठाकुर का सांसद बनने से पहले दुख दर्द में लोगों के बीच खड़े रहने की छवि का भी है। सांसद बन जाने के बाद भी त्रासदी में आमजन अपने उसी दरभंगा के बेटा और जमीनी कार्यकर्ता को खोजते नजर आये।
उपरोक्त बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि ऐसे में इस कमी को पाटने में गोपालजी ठाकुर की कोर कमिटी और सलाहकार खेमा की विफलता को भी देखा जा सकता है। दोनो ही अपेक्षाओं के बीच उचित समयानुकूल संवाद की कमी नजर आयी। गोपालजी ठाकुर की सदन में व्यस्तता के बीच उनके इर्द गिर्द सलाहकार मंडली और कोर कमिटी को पूरी तैयारी करके ज्यादातर लोगों से सही मुद्दे आधारित संवाद करवाने की भूमिका निभानी चाहिए थी। समर्थक खेमो को भी आवेशित मोड में सवाल उठाने वालों को टारगेट नही करके इस पूर्व की जनपेक्षाओ को कारण मानते हुए सम्मान करते हुए संवाद स्थापित करना चाहिए था।
वक्त अभी भी वही है। समय बहुत कम बीता है। ऐसे अब देखने वाले बात यही होगी कि संवाद चैनल को दुरुस्त कर एकसाथ दोनो अपेक्षाओं को पूरा करने में अक्षमता को गोपालजी ठाकुर अपने उसी सरल स्वभाव के साथ आमजन के बीच स्वयं रख पाते हैं और ढुलमुल सलाहकार मण्डली को भी पैनी निगाह से भी पहचान पाते हैं या नही। बहरहाल, अब गोपालजी ठाकुर के जवाब और अगले कदम केलिए सत्र की समाप्ति का इंतजार ही करना होगा शायद।
(नोट: आलेख लेखक केे निजी अवलोकन के आधार पर लिखा गया है।)

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