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August 22, 2019

कुलपति ने किया “डायबिटीज के संग जीना” एवं “इनसाईट कार्डियोलॉजी” का विमोचन।

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दरभंगा : विश्वविद्यालय सभागार में डा0 एके गुप्ता लिखित पुस्तक “डायबिटीज के संग जीना” एवं “इनसाईट कार्डियोलॉजी” का विमोचन करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि जीवन शैली का तेजी से बदलना ही तरह-तरह की बीमारियों को जन्म देती है। हार्ट अटैक की संख्या यूरोपीय पश्चिमी देशों में कमती जा रही है, वहीं दूसरी ओर हमारे देश में इसकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। अपनी मूल संस्कृति को छोड़कर पश्चिमी सभ्यता अपनाया जाना इसका मुख्य कारण है। स्वस्थ रहने के लिए मस्तिष्क को नियंत्रित रखना जरूरी है। जीवन शैली सकारात्मक विचारों से कंट्रोल होती है। यह पुस्तक जो डायबिटीज के मरीज नहीं है उनके लिए भी उपयोगी है। वेल्थ की कीमत पर हेल्थ को गंवाना नहीं चाहिए। जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ एवं डायबिटोलॉजिस्ट डा. ए. के. गुप्ता ने कहा है कि स्वस्थ एवं अनुशासित जीवन शैली को अपनाकर हम मधुमेह एवं हृदय रोग से संबंधित व्याधियों पर नियंत्रण एवं बचाव पा सकते हैं। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सभागार में डायबिटीज के संग जीना एवं इनसाइट कार्डियोलॉजी नामक अपनी लिखी दो पुस्तकों के विमोचन समारोह में डा. गुप्ता ने कहा कि मधुमेह (डायबिटीज) मात्र चीनी की बीमारी नहीं है, बल्कि बहुत सारे गंभीर बीमारियों की जननी है और इसके परिणाम बड़े घातक हैं। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि यदि शीघ्र ही इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो आने वाले समय में भारत दुनिया की मधुमेह और कोरोनरी हृदय रोग की राजधानी के रूप में जाना जाएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय युवाओं की बड़ी संख्या खराब जीवनशैली के कारण दिल के दौरे का शिकार हो रही है। उन्होंने कहा कि युवाओं को इस रोग के नियंत्रण के लिए आगे आना चाहिए और सक्रिय जीवन शैली अपनाकर, मानसिक तनाव, मोटापा तथा विभिन्न प्रकार के व्यसनों से दूर रहकर इन सभी व्याधियों से बच सकते हैं। दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के औषधि विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. गुप्ता ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के हाल ही में जारी किए गए रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 ईस्वी तक भारत में डायबिटीज (मधुमेह) से ग्रसित मरीजों की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा हो जाएगी। वर्तमान में 6 करोड़ 20 लाख भारतीय मधुमेह की विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे हैं। यह भारत के कुल जनसंख्या का 7.1 प्रतिशत है। डा. गुप्ता ने बताया कि भारत में औसतन 42 वर्ष की उम्र में युवाओं में मधुमेह की बीमारियों की आशंका देखी जाती है। डा. गुप्ता ने कहा कि भारत में युवा वर्ग अपनी जीवनशैली के प्रति संयमित (सजग) नहीं होते हैं। वह अपनी जीवनशैली को निष्क्रिय बनाकर तनाव, मोटापा, धूम्रपान एवं जंक फूड के सेवन के साथ-साथ स्वास्थ्य को किसी भी प्रकार की वरीयता नहीं देते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय हार्ट एसोसिएशन के एक अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2035 ईस्वी तक भारत में मधुमेह से ग्रसित मरीजों की संख्या लगभग 10 करोड़ 9 लाख से ऊपर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हृदय रोग एवं स्ट्रोक से मरने वालों की संख्या 1990 में जहां 15.2% थी। वहीं 2016 में 28.1% हो गई है। इसमें 17.8% मौतें हृदय रोग के कारण हुई है जबकि 7.1% मौत ही स्ट्रोक के कारण हुई है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में हृदय रोग के कारण मृत्यु और विकलांगता ज्यादा पाई गई है। वहीं स्ट्रोक के कारण हुई मौत और विकलांगता में दोनों की संख्या बराबर है। वहीं अमेरिका के यूनिवर्सिटी आॅफ केनटुकी, लेक्सींगटन के सहायक प्राध्यापक डॉ. गौरव कुमार ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि दिल में हुए किसी भी प्रकार के विकार को हृदय रोग कहा जाता है। हृदय रोग शब्द का प्रयोग अक्सर कार्डियोवैस्कुलर बीमारी शब्द के पर्यायवाची के रूप में किया जाता है। उन्होंने कहा कि कार्डियोवैस्कुलर बीमारी आमतौर पर उन स्थितियों को संदर्भित करती है जिनमें रक्त धमनियां अवरुद्ध या बाधित हो जाती है और यही स्थिति दिल का दौरा छाती का दर्द, एनजीना या स्ट्रोक का कारण बन सकती है। हृदय की स्थितियां जो कि आपके दिल की मांसपेशियां, वाँल्व या रिद्म को प्रभावित करती है को भी हृदय रोग के रूप में देखा जाता है। उन्होंने बताया कि सीवीडी (कार्डियोवैस्कुलर डिजीज) का बोझ और हृदय रोग के कारण वैश्विक स्तर पर मौतें ज्यादा हो रही हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज से अनुमानित 177 लाख लोग मारे गए जो सभी वैश्विक मौतों का 31% है उन्होंने कहा कि 74 लाख मौतें कोरोनरी हृदय रोग के कारण और 67 लाख मौतें स्ट्रोक के कारण हुई थी। डॉ. गौरव ने दिल के बीमारी के लक्षण और कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति के छाती में दर्द, सीने में खिंचाव, छाती पर दबाव और सीने में असुविधा (एनजीना) या सांस लेने में तकलीफ, शरीर के अंगों में दर्द सूजन कमजोरी ठंडापन या शरीर के किसी हिस्से में रक्त वाहिकाओं संकुचित हो जाती है, गर्दन, जबरे गले, ऊपरी पेट या पीठ में दर्द होता है ऐसी स्थिति में उसे तुरंत चिकित्सकों का परामर्श लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि हृदय रोग से संबंधित समस्याओं के उत्पन्न होने के 2 घंटे के अंदर अगर उसका इलाज शुरू कर दिया जाए तो उसकी जान बच जाती है। समारोह का संचालन डॉ. ए डी एन सिंह ने किया। अध्यक्षता करते हुए डॉ. बी बी शाही ने लोगों से बताया कि वह अपने शरीर की रक्षा स्वयं कर सकते हैं। समारोह में बड़ी संख्या में दरभंगा शहर के नामी-गिरामी चिकित्सक, प्रोफेसर एवं बुद्धिजीवी शामिल हुए थे। धन्यवाद ज्ञापन पारस ग्लोबल हॉस्पिटल के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी आशीष मुखर्जी ने किया।

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