वेद ज्ञान-विज्ञान का शाश्वत एवं अक्षय स्रोत : प्रो देवनारायण झा।
दरभंगा:वेद समस्त ज्ञान-विज्ञान का शाश्वत,अक्षय एवं विस्तृत स्रोत है।वैदिक ज्ञान की सर्वोपयोगिता को सभी स्वीकार करते हैं।वैदिक अध्ययन-अध्यापन हेतु साधक बनना आवश्यक है। इसकी ज्ञान-प्राप्ति हेतु चिंतन एवं मनन की अपेक्षा होती है। वैदिक ज्ञान भूत,वर्तमान तथा भविष्य के लिए समान रूप से उपयोगी तथा अपरिवर्तनीय है।वेद को जानने वाले सर्वज्ञ तथा सब कार्यों में कुशल होते हैं।वेद सभी शंकाओं को दूर करता है।गणित सभी शास्त्रों में श्रेष्ठ है,जिसका मूल स्रोत वेद है। उक्त बातें संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो देवनारायण झा ने गणित तथा संस्कृत विभाग सीएम कॉलेज,दरभंगा के संयुक्त तत्त्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार हॉल में वैदिक गणित का स्वरूप एवं उसकी प्रासंगिकता विषयक राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में कहा। उन्होंने कहा कि वेद के 10 अर्थों में 8 अर्थ अधिक प्रचलित हैं।वैदिक गणित सूत्र रूप में है,जिन्हें विस्तार से आज जानने व समझने की जरूरत है।वैदिक गणित की आज भी काफी प्रासंगिकता है,जिनपर व्यापक शोध की अपेक्षा है।गणित और विज्ञान हमारे जीवन के हर क्षेत्र को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं।
दीप प्रज्वलित कर सेमिनार का उद्घाटन करते हुए विश्वविद्यालय गणित विभागाध्यक्ष-सह-लोक सूचना पदाधिकारी प्रो नवीन कुमार अग्रवाल ने कहा कि वेद ज्ञान का असीमित भंडार है।गणित का उद्भव प्राचीन भारत में ही हुआ था।शून्य, दशमलव तथा अंकों की खोज सर्वप्रथम यहीं हुआ, जिसे परिवर्तित कर विदेशियों ने भी अपनाया।प्राचीन भारत में आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त,विक्रमाचार्य,महावीराचार्य तथा बौद्धायान आदि अनेक गणितज्ञ तथा वैज्ञानिक हुए।वैदिक गणित के प्रयोग से हम आसानी से तथा शुद्धतापूर्वक तीव्र गति से गणना कर सकते हैं। वैदिक ज्ञान-विज्ञान का उपयोग कर हम किसी भी क्षेत्र में लाभ उठा सकते हैं। इस कारण इसका पीढ़ी-दर- पीढ़ी स्थानांतरण आवश्यक है।वैदिक गणित व तकनीक काफी उन्नत एवं वैज्ञानिक हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो रामनाथ सिंह ने कहा कि वेद में विज्ञानपरक सभी शास्त्र यथा- गणित,ज्योतिष, चिकित्साविज्ञान,जीवविज्ञान आदि उपलब्ध हैं।भारतीय परंपरा अनुसार वेद की रचना दस हजार वर्ष पूर्व हुई थी, जिन्हें तीन हजार वर्ष पूर्व वेदव्यास ने उन्हें विषयानुसार चार भागों-ऋक्, साम,यजुर् तथा अथर्व में विभाजित किया। वेद ज्ञान- विज्ञान का प्राचीन एवं शाश्वत विश्वकोश है। बिना वेद- अध्ययन के अन्य ज्ञान अधूरा होता है।
मुख्य वक्ता के रूप में अंग्रेजी विभागाध्यक्षा प्रो इंदिरा झा ने कहा कि शंकराचार्य द्वारा वैदिक गणित पर अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं। कंप्यूटर तथा दशमलव-प्रणाली वैदिक गणित की देन है।गणित और दर्शन में गहरा संबंध है,जिस पर शोध अपेक्षित है।गणित गणपति गणेश की प्राप्ति का सोपान है। यद्यपि वैदिक गणित अपेक्षाकृत कठिन है,पर इसकी वैश्विक उपयोगिता हेतु इसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है।यूरोपीय देशों ने भारत के संख्यात्मक ज्ञान को अरब देशों के माध्यम से प्राप्त किया था।वेद सभी कलाओं, शास्त्रों तथा विधाओं का मूल स्रोत है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है,जिसमें सर्वविद्ध कल्याण की भावना निहित है। इस अवसर पर प्रो विश्वनाथ झा, डॉ प्रभात कुमार चौधरी,डॉ शशांक शुक्ला,प्रो नारायण झा, डॉ सुरेश पासवान,डॉ आरती कुमारी,प्रो राजानंद झा, डॉ रुद्रकांत अमर,प्रो रागिनी रंजन,डॉ अभिलाषा कुमारी, डॉ चंदा कुमारी,डॉ दीनानाथ साह,डॉ सच्चिदानंद स्नेही, डॉ राम अवतार प्रसाद, डॉ त्रिलोक नाथ झा, प्रशांत कुमार,संजीत कुमार राम, कमलेश कुमार,विरोध राम, प्रकाश झा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम में अरबाज खान,पंकज कुमार,मो असलम,पूजा कुमारी, सुधा कुमारी,रागिनी कुमारी,नीरज कुमार,बलराम कुमार, मो मोवाज हुसैन,आफताब आलम आदि ने सक्रिय योगदान किया।आगत अतिथियों का पाग,चादर तथा पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया।सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।राजेश्वर झा ने मंगलाचरण के रूप में वेदध्वनि प्रस्तुत किया।
आगत अतिथियों का स्वागत गणित विभागाध्यक्ष डॉ विजय कुमार झा ने किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष डा० आर एन चौरसिया ने कहा कि सेमिनार में प्राप्त स्तरीय शोध आलेखों को ISSN नंबर युक्त संपादित ग्रंथ के रूप में छापा जाएगा। धन्यवाद ज्ञापन गणित के सहायक प्राध्यापक डॉ अनुपम कुमार सिंह ने किया।
जनसम्पर्क कार्यालय में बिससूत्री कार्यालय खोलने के विरुद्ध पत्रकारों ने सौंपा ज्ञापन।।
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