Home Featured राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन।
September 4, 2019

राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन।

दरभंगा:समाज और राष्ट्र के उत्तरोत्तर विकास व सुख- समृद्धि में शिक्षकों की अहम भूमिका होती है।शिक्षक राष्ट्र की धरोहर के रूप में समाज के पथ-प्रदर्शक होते हैं। शिक्षक का कार्य सिर्फ पढाना ही नहीं होता है,बल्कि अपने छात्रों का उचित मार्गदर्शन करना भी है।उक्त बातें भारत विकास परिषद् , उत्तर बिहार शाखा के प्रांतीय महासचिव राजेश कुमार ने भारत विकास परिषद् , विद्यापति शाखा,दरभंगा   तत्त्वावधान में विद्यालय में शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र-निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषयक संगोष्ठी सह भाषण- प्रतियोगिता में मुख्य अतिथि के रूप में कहा।

सम्मानित अतिथि के रुप में मिल्लत कॉलेज के पूर्व समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ भक्तिनाथ झा ने कहा कि शिक्षक छात्रों में मानवीय गुणों का सम्यक् विकास करते हैं।हमारे जीवन में गुरु का स्थान सर्वोच्च होता है। शिक्षक हमें अच्छे-बुरे का भेद बताकर,जियो और जीने दो की भावना सिखाते हैं।अपने छात्रों के माध्यम से शिक्षक का राष्ट्र-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में समस्तीपुर रेलवे से अवकाश प्राप्त इंजीनियर रमण अग्रवाल ने कहा कि शिक्षक छात्रों को सही मार्गदर्शन कर कुशल एवं समाजसेवी नागरिक बनाते हैं। इस अर्थ में शिक्षक राष्ट्र-निर्माता होते हैं।मुख्य वक्ता के रूप में दरभंगा कोर्ट के अधिवक्ता डॉ शंकर झा ने कहा कि प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली थी, जहां छात्र न केवल सैद्धांतिक बल्कि व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त करते थे।आज शिक्षकों की महत्ता कम होने के कारण ही इतनी अधिक सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। छात्रों की प्रतिभा को निखार कर शिक्षक उन्हें संस्कारित एवं समाजोपयोगी बनाते हैं।
दीप प्रज्वलित कर संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए परिषद् के पूर्व अध्यक्ष अनिल कुमार ने कहा कि गुरु शिष्य में गहरा और आत्मीय संबंध होता है। गुरु धर्म और संस्कृति को अपने शिष्यों में स्थापित करते हुए छात्रों के अंधकार रूपी अज्ञानता को दूर कर प्रकाश रूपी ज्ञान प्रदान करते हैं।शिक्षा का उद्देश्य छात्रों में उत्तरदायित्व का बोध कराना होता है।
परिषद् के सचिव डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि आदर्श शिक्षक छात्रों को न केवल विद्या दान देते हैं, बल्कि समुचित जीवनमार्ग का ज्ञान तथा नैतिक शिक्षा देकर मानवोचित गुणों का विकास भी करते हैं।शिक्षक प्रकाशस्तंभ व मार्गदर्शक होते हैं,जिनका आचरण आदरणीय एवं अनुकरणीय होता है।डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,जिनके जन्म दिवस को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं,वे आदर्श शिक्षक,बड़े दार्शनिक,सच्चे समाजसेवी तथा राजनीतिज्ञ थे।उन्हें अपनी संस्कृति एवं कला से अपार लगा था। भारतीय समाज में उनका काफी सम्मान रहा है।अध्यक्षीय संबोधन में प्रो रामानंद यादव ने कहा कि राष्ट्र भौतिकता से कितना भी आगे बढ़ जाए,पर शिक्षकों की महत्ता सदैव कायम रहेगा। हम शिक्षकों के ऋण से जीवन में कभी भी पूरी उऋण नहीं हो सकते।शिक्षक एक कुशल शिल्पकार या कुम्हार की तरह छात्रों की प्रतिभा को तरसते हैं और उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं। वे छात्रों की क्षमता एवं इच्छा को परख कर उसे जीवन में आगे बढ़ाते हैं।गुरु राष्ट्र के प्रति भावना को जगाते हैं तथा अधिकार एवं कर्तव्य को भी सिखाते हैं।
कार्यक्रम का प्रारंभ राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम्.. तथा अंत राष्ट्रगान जन गण मन.. के सामूहिक गायन से हुआ। अतिथियों ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन तथा विवेकानंद के चित्र पर पुष्पांजलि की।

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