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September 11, 2019

डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू को दाता सदस्य के पद से हटाए जाने पर प्रदर्शन।

दरभंगा:ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के चार संबद्ध कॉलेजों के दाता सदस्य के पद से डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू को हटाए जाने के  के खिलाफ चारों सम्बद्ध कॉलेजों क्रमशः एमएमटीएम कॉलेज दरभंगा, एमआरएसएम काॅलेज आनन्दपुर, एमएम काॅलेज आजमनगर, एएमएम काॅलेज, बहेड़ा के शिक्षकों, शिक्षकेत्तर कर्मियों सहित विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों एवं समाजसेवियों ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए बुधवार को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेन्द्र कुमार सिंह की अनुपस्थिति में एक स्मार पत्र उनके कार्यभार में रहे विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ जय गोपाल को सौंपा।

मालूम हो कि विगत दिनों एक दैनिक अखबार में डॉ चौधरी को उनके चारों कॉलेज से दाता सदस्य के पद से हटाए जाने की खबर छपने के बाद कॉलेजों के शिक्षक, शिक्षकेत्तर कर्मियों एवं विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों एवं समाजसेवी के  हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन प्रति कुलपति डॉ जय गोपाल को सौंपा। प्रतिनिधिमंडल में सीनेट सदस्य एवं शिक्षक प्रतिनिधि एमएमटीएम कॉलेज डॉ राम शुभग चौधरी, प्रधानाचार्य एमएमटीएम कॉलेज डॉ उदय कांत मिश्र, प्रधानाचार्य एमएम कॉलेज डॉ अमरेंद्र मिश्र, प्रधानाचार्य एमआर एसएम कॉलेज प्रो गुणानन्द चौधरी, प्रधानाचार्य अयाची मिथिला महिला महाविद्यालय प्रो रमेश झा, शिक्षक प्रतिनिधि एमआरएसएम काॅलेज डॉ गुणानन्द झा, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सदस्य पंडित रामनारायण झा, सीपीआई नेता राजीव चौधरी , सीपीएम नेता गोपाल ठाकुर, भाजपा नेता पारसनाथ चौधरी, डॉ अमलेन्दु शेखर पाठक, प्रो जीव कांत मिश्र, परमानंद झा, श्याम राम, पप्पू सिंह, एमएलएसएम कालेज शिक्षकेत्तर कर्मचारी संघ के सचिव पवन कुमार मिश्र, चन्द्रशेखर झा बूढ़ा भाई, देवेंद्र झा आदि शामिल थे। चारों कॉलेजों के शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों द्वारा सौंपे गए प्रतिवेदन में कहा गया है कि डाॅ बैद्यनाथ चौधरी बैजू संबंधित महाविद्यालयों के संस्थापक ही नहीं अपितु लगभग 30-35 वर्षों से दाता सदस्य के रूप में शासी निकाय के सदस्य भी हैं। उनके विरुद्ध बेबुनियाद, मनगढ़ंत, राजनीतिक द्वेष तथा पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर विश्वविद्यालय में प्रतिनियुक्त पदाधिकारियों के मार्गदर्शन में आरोप आपके समक्ष उपस्थित किया गया है। उसे तत्काल निरस्त करने की कृपा की जाए तथा उन शिक्षकों पर कार्रवाई करने का दिशा-निर्देश प्रधानाचार्य तथा शासी निकाय को दिया जाए ।
प्रतिवेदन में विधि मान्य परंपरा का हवाला देते हुए कहा गया है कि शिकायतकर्ता को शिकायत के साथ साक्ष्य तथा शपथ पत्र देना चाहिए था जो कि नहीं दिया गया है। इसी तरह महाविद्यालय के शैक्षिक संचालन में इस तरह की अनर्गल शिकायत से अनुशासनहीनता को प्रोत्साहन मिला है और फलस्वरूप शैक्षिक वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रतिवेदन में यह भी कहा गया है कि जिन शिक्षकों ने शिकायत पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, उनके हस्ताक्षर की जांच आवश्यक है। साथ ही विश्वविद्यालय अधिनियम एवं परिनियम में उल्लेखित आचार संहिता का उल्लंघन भी इसमें परिलक्षित होता है क्योंकि देखा जा रहा है कि यह सभी शिक्षक प्रधानाचार्य की अनुमति के बिना विश्वविद्यालय में चक्कर लगाते रहते हैं तथा राजनीतिक गतिविधि में अपना पूरा समय व्यतीत करते हैं। आरोप लगाया गया है कि इन शिक्षकों का शिक्षण कार्य से कोई मतलब नहीं है साथ ही प्रभारी प्रधानाचार्य एवं साशी निकाय के सचिव से धमकी भरे लहजे में बात करते हैं । इनके व्यवहार से प्राध्यापक की गरिमा को ठेस पहुंचती है।
महाविद्यालय के शिक्षकों एवं शिक्षकेत्तर कर्मियों ने उदारता, महानता तथा दानशीलता का हवाला देते हुए कहा है कि डाॅ चौधरी ने मिथिलांचल में पांच महाविद्यालयों की स्थापना की है। इनमें से किसी भी महाविद्यालय के नामकरण में ना तो अपने नाम का उपयोग किया है और ना ही अपने माता-पिता के नाम का ही इस्तेमाल किया है। इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें प्रशस्ति पत्र दिया जाना चाहिए था।
प्रतिवेदन में कहा गया कि यह सत्य है कि डॉ चौधरी छात्र जीवन से ही राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे हैं। 40 वर्ष पूर्व छात्रसंघ के निर्वाचित अध्यक्ष तथा महासचिव भी रहे हैं। छात्र आंदोलन के क्रम में बड़ी रेल लाइन के निर्माण, दूरदर्शन से मैथिली में प्रसारण तथा जयप्रकाश आंदोलन के क्रम में जेल गए हैं। डॉ चौधरी ने न सिर्फ मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु एक लंबे आंदोलन में सक्रिय और सराहनीय भूमिका निभाई है बल्कि उन्होंने राज दरभंगा से 350 एकड़ जमीन एवं भवन आदि को अपने आंदोलन के बल पर विश्वविद्यालय को दिलाने में सराहनीय भूमिका निभाई है। मैथिली भाषा को अष्टम अनुसूची में शामिल करवाने का श्रेय भी चौधरी को जाता है। मिथिला राज्य की स्थापना हेतु सेवा संस्थान की स्थापना उन्होंने 40 वर्ष पूर्व की है। साथ ही संस्थान की ओर से प्रतिवर्ष मिथिला विभूति पर्व समारोह आपके मुख्य संरक्षण में मनाते आ रहे हैं।
डॉ चौधरी की गिरफ्तारी दी आइआरए तथा मिशा के तहत करने के प्रश्न पर कहा गया है कि आपातकाल के दौरान राष्ट्र के सभी विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। जिसमें कई पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में कई मुख्यमंत्री इसमे शामिल रहे हैं। इस प्रसंग में यह उल्लेख किया गया है कि 1984 में स्वर्गीय राजीव गांधी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद आईआरए तथा मिशा को रद्द करते हुए उसे वापस ले लिया गया था।
प्रतिवेदन में यह भी कहा गया है कि डॉ चौधरी सर्वप्रथम एम एल एस एम कॉलेज दरभंगा के संस्थापक हैं तथा उक्त महाविद्यालय के आजीवन सदस्य के रूप में लगभग 30 वर्षों से सदस्य हैं। साथ ही इनके द्वारा स्थापित चार महाविद्यालयों एवं अन्य महाविद्यालय में भी दाता सदस्य के रूप में नामित है। जिसकी अधिसूचना अभिषद्, अधिषद् एवं कुलाधिपति के अनुमोदन उपरांत अधिसूचित है। वहीं, विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 18 के प्रावधान अनुसार महामहिम कुलाधिपति के ही अधिषद् की बैठक की अध्यक्षता करने का प्रावधान है। फलस्वरूप अधिषद् के निर्णय को बदलने का अधिकार ना तो सिंडिकेट को है और ना ही कुलपति को। इतना ही नहीं, एमएलएसएम कॉलेज दरभंगा के राज्य सरकार के निर्णय के आलोक में जो अधिग्रहण हेतु दस्तावेज तैयार किया गया उस दस्तावेज पर भी डाॅ चौधरी का सचिव के रूप में तथा विश्वविद्यालय के कुलसचिव का हस्ताक्षर है।
ज्ञापन में यह भी दलील दी गई है कि डाॅ चौधरी द्वारा स्थापित सभी महाविद्यालय को अस्थाई संबद्धता प्राप्त है तथा शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मी के पद स्वीकृत हैं तथा डाॅ चौधरी सचिव की हैसियत से विश्वविद्यालय से पत्राचार करते रहे हैं। निगरानी न्यायालय में जो एमएलएसएम कॉलेज दरभंगा सहित अन्य महाविद्यालय पर मुकदमा चल रहा है वह अभी लंबित है तथा डाॅ चौधरी को उनके आंदोलन की प्रखरता के सम्मान स्वरूप ₹10,000 प्रतिमाह जयप्रकाश नारायण सेनानी के रूप में सरकार द्वारा दी जा रही है।
प्रतिवेदन में कुलपति से आग्रह किया गया है कि 10 दिनों के अंदर इस आरोप पत्र को निरस्त किया जाए । कुलपति की अनुपस्थिति में प्रति कुलपति को स्मार पत्र सौंपे जाने के बाद विश्वविद्यालय मुख्यालय के प्रांगण में एक सभा हुई जिसमें शिक्षकों, शिक्षकेतर कर्मियों एवं राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों व समाजसेवियों ने डॉ बैजू के पक्ष में अपने विचार व्यक्त किए।

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