Home Featured भाई को लेकर बिहार की भूमि पर कदम रखते ही फफक पड़ा सतीश का भाई मुकेश।
September 14, 2019

भाई को लेकर बिहार की भूमि पर कदम रखते ही फफक पड़ा सतीश का भाई मुकेश।

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दरभंगा: आखिरकार अपने घर पहुंच कर परिवार से मिलने की इंतजार की घड़ियां खत्म होने को है सतीश के जीवन की। शनिवार की दोपहर वह क्षण भी आ रहा है।हलाँकि बांग्लादेश की जेल से 11 साल के बाद रिहा होकर वापस लौट रहे बिहार के सतीश चौधरी की वतन वापसी गुरुवार को हो ही गई थी। बांग्लादेशी कपड़ों में ही उसे शुक्रवार की देर रात पटना-हावड़ा जनशताब्दी एक्सप्रेस से वह पटना जंक्शन लाया गया। इस दौरान सतीश चौधरी का छोटा भाई मुकेश चौधरी भी उनके साथ था।
सतीश के घर वापसी को लेकर पटना जंक्शन के प्लेटफार्म संख्या 9 पर समाजसेवियों ने सतीश और मुकेश का फूल मालाओं से स्वागत किया। उन्हें मिठाइयां खिलाई गई। इस दौरान सतीश का भाई मुकेश काफी भावुक नजर आया और अपने भाई के घर वापसी की खुशी में उसके खुशी के आंसू बह निकले और फफक फफक रो पड़ा।
सतीश के भाई मुकेश ने पटना जंक्शन पर मीडिया से बात करते हुए बताया कि उसने अपने भाई को खोजने के लिए दर-दर की ठोकरें खाई है। उसका परिवार तो आशा ही छोड़ चुका था कि वह अब कभी वापस लौट के आएगा, पर कुछ समाजसेवियों और मीडिया की मदद से उनका भाई आज सकुशल घर लौट पाया है। इससे वह बेहद खुश है।
सतीश के भाई गंगासागर चौधरी ने बताया कि 25 साल की उम्र में ही उसका बड़ा भाई उसके घर से काम के सिलसिले में निकला था। मानसिक रुप से कमजोर होने के कारण वह लापता हो गया। लेकिन 11 साल के बाद उसका बड़ा भाई अपने गांव वापस लौट रहा है। इस कारण से पूरे गांव समाज में खुशी का माहौल है। खास करके मां, सतीश के लिए पलके बिछाए इंतजार कर रही है। वहीं, सतीश के इतने दिनों जेल में बंद रहने से उसकी मानसिक स्थिति और भी खराब हो गई है। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उसका अब आगे का भरण पोषण कैसे होगा। इसको लेकर सतीश के दोनों भाइयों ने सरकार से मदद की गुजारिश की है।
दरअसल दरभंगा जिला के मनोरथा गांव के रहने वाले सतीश चौधरी का मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता था। वह इलाज के लिए 2008 में दरभंगा से पटना आया था। इसी दौरान भटक कर वह बांग्लादेश पहुंच गया। उसके छोटे भाई मुकेश चौधरी ने उसे खोजने का काफी प्रयास किया. लेकिन नहीं मिलने के बाद वह निराश हो गया। वहीं, 2012 में उसे जानकारी मिली की उसका भाई बांग्लादेश के जेल में बंद है। इसके बाद वह उसे वापस लाने के लिए काफी प्रयास किये। उसने सरकार और प्रशासन से मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई मदद नहीं मिली। वहीं, मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन ने उसकी मदद की जिसके बाद उसे शुक्रवार की शाम सकुशल हंसते मुस्कुराते पटना जंक्शन लाया जा सका।

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