जलजमाव से ग्रसित कुशेश्वरस्थान में अब मछली उत्पादन के लिए होगा हेचरी का निर्माण।
दरभंगा: दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की कला भी इंसान में होती है। जो इस कला को सीख लेता है, वह आपदा में भी अवसर बना लेता है। कुछ ऐसी ही कहानी है जिले के कुशेश्वरस्थान क्षेत्र का, जहां जलजमाव और बाढ़ की विभीषिका झेलना लोगो की नियति बन गयी है। साधन के रूप में नाव का उपयोग यहां सालोभर होता है। पर अब यहां के लोगों केलिए यही जलजमाव क्षेत्र होना भी एक अवसर प्रदान कर रहा है। सरकार के द्वारा मछली उत्पादन केलिए हेचरी निर्माण की कार्ययोजना बनायी जा रही है।
शनिवार को कुशेश्वरस्थान प्रखंड में मछली उत्पादन के लिए हेचरी निर्माण के लिए भूमि का चयन किया गया। कार्य योजना को लेकर जिला मत्स्य पदाधिकारी सह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी विनय कुमार, विभागीय कनीय अभियंता चन्द्र प्रकाश यादव, मत्स्य प्रसार पदाधिकारी अविनाश तथा मत्सय विकास पदाधिकारी ललित नारायण साह सहित आधे दर्जन पदाधिकारियों की टीम ने असमा गांव में मत्स्य बीज हेचरी निर्माण केलिए स्थल का विधिवत चयन किया। दौरा से लौटे डीएफओ विनय कुमार ने बताया कि पूरे बिहार में विशेष मत्स्य हेचरी दरभंगा, पश्चिमी चंपारण, सारण सहित मात्र चार हेचरी बनेगी, जिसमे बीज की खपत को देखते हुऐ कुशेशवरस्थान मे बनेगी। 50 किलोमीटर की क्षेत्र में एक भी मत्स्य बीज हेचरी नही है, जबकी इस इलाके मे मत्स्य बीज की खपत जिले में सर्वाधिक है। डीएफओ के अनुसार इस इलाके के लोग बहेड़ी, सीतामढ़ी तथा नेपाल से मत्स्य बीज बड़े पैमाने पर लाते हैं। इससे ट्रांसपोर्टेशन के दौरान मछली बीज की मृत्यु दर अधिक होती है और किसानों को उन्नत बीज भी नहीं मिल पाता है। कुशेश्वरस्थान मे हेचरी बनने से अब सारी समस्याओं का समाधान हो सकेगा। 22 लाख इकाई लागत से बनने बाली इस हेचरी मे 4 नर्सरी तालाब, 2 रियरिंग तालाब तथा 2 संचयन तालाब तथा मत्स्य बीज सेंटर में पानी टंकी सहित हेचरी सिस्टम की स्थापना होगी। इससे प्रति वर्ष कम से कम एक करोड़ मत्स्य बीज का उत्पादन होगा और अधिकतम 10 करोड़ बीज उत्पादन होगा।
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