Home Featured संस्कृत भारत की प्राणभूत भाषा है: डॉ आरएन चौरसिया।
August 4, 2019

संस्कृत भारत की प्राणभूत भाषा है: डॉ आरएन चौरसिया।

दरभंगा कार्यालय:विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग तथा लोक भाषा प्रचार समिति,बिहार शाखा के संयुक्त तत्त्वावधान में स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में चल रहे 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के चौथे दिन आज शिविर का शुभारंभ करते हुए स्थानीय कुंवर सिंह महाविद्यालय,लहेरियासराय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ शिवकुमार मिश्र ने कहा कि संस्कृत राष्ट्रीय भावात्मकता का प्रतीक है,जिसमें राष्ट्रीय एकता के सूत्र सन्निहित हैं। संस्कृत भाषा-साहित्य में जो उच्च भाव वर्णित है,वह अन्यत्र दुर्लभ है।पर्यावरण- जागरूकता हेतु संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन आवश्यक है।उन्होंने कहा कि संस्कृत का सरल प्रयोग समय की मांग है,ताकि आम लोग भी संस्कृत अध्ययन-अध्यापन हेतु अग्रसर हो सकें।
सी एम कॉलेज,दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि संस्कृत भारत की प्राणभूत भाषा है जो भारतीय धर्म व संस्कृति का अक्षय भंडार है। संस्कृत भारतीय संस्कृति की वाहक है।आज विश्व में हमारी पहचान इसी भाषा के गौरव से है।मानव का कल्याण एवं राष्ट्र की उन्नति संस्कृत के अध्ययन से ही संभव है। संस्कृत वैज्ञानिक दृष्टि से परिष्कृत एवं पूर्ण भाषा है,जो मानव के बौद्धिक विकास के प्रारंभिक काल में ही अवतरित हुआ।
शुभारंभ सत्र की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ नीरजा मिश्र ने कहा कि लगभग 3000 वर्ष पूर्व से ही संस्कृत भारतीयता एवं संस्कृति का मूल आधार रही है।संस्कृत संस्कार युक्त भाषा है।संस्कृत में निहित दर्शन को अपनाकर ही हम विश्व का कल्याण कर सकते हैं।भारतीय संस्कृति के प्रतीक वेद,उपनिषद् , पुराण, रामायण तथा गीता संस्कृत में सुरक्षित हैं।
इस शिविर में राहुल रेणु , प्रशांत कुमार, भारत कुमार मंडल,योगेंद्र पासवान, बालकृष्ण कुमार सिंह,अजय कुमार,घनश्याम पांडे,विनोद कुमार राम,नीतू कुमारी, शिवानी प्रिया, संजीत कुमार राम, दीपांशु कुमार तथा कमलेश कुमार महतो आदि सहित 50 से अधिक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।
शिविर प्रशिक्षक अंशु कुमारी ने विभक्ति प्रयोग द्वारा सरल संस्कृत वार्तालाप का अभ्यास कराया।वहीं दूसरे प्रशिक्षक घनश्याम पांडे ने अव्यय प्रयोग के माध्यम से संस्कृत संभाषण का अभ्यास कराया। शिविर का प्रारंभ संकल्प गान से तथा समापन एकता मंत्र से हुआ।

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