Home Featured भारतीय ऋषि परम्परा ईश्वरीय विश्वास के साथ त्यागपूर्वक जीवन जीना सिखाती है : डॉ० सौरभ।
August 8, 2024

भारतीय ऋषि परम्परा ईश्वरीय विश्वास के साथ त्यागपूर्वक जीवन जीना सिखाती है : डॉ० सौरभ।

दरभंगा: मारवाडी महाविद्यालय के द्वारा आयोजित “संस्कृत, संस्कृति और संस्कार” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का सम्पूर्ति सत्र प्रधानाचार्य डा दिलीप कुमार की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।

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दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलानुशासक तथा संस्कृत विभाग के डॉक्टर सौरभ ने सारस्वत अतिथि के रूप में श्रावण मास को याद करते हुए शिव वन्दना से अपने व्याख्यान का प्रारम्भ किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति के सौन्दर्य को बताते हुए कहा भारतीय ऋषि परम्परा ईशावास्यमिदं सर्वं की है जो ईश्वरीय विश्वास के साथ त्यागपूर्वक जीवन जीना सिखाती है। जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय के तुलनात्मक धर्म एवं सभ्यता केन्द्र के निदेशक डा. अजय कुमार सिंह ने विशिष्टातिथि के तौर पर व्याख्यान देते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर एक शक्ति है जो असीमित ऊर्जा से भरपूर है। इसे समझने में संस्कृत अत्यंत सहायक है। काश्मीरी शैव संस्कृति की चर्चा करते हुए उन्होने बताया कि शव से शिव बनाती है हमारी संस्कृति। संस्कार जीने की कला हमें भारतीय संस्कृति में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। सत्र का संयोजन करते हुए कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर व्याकरण विभाग की सहायक आचार्या डा साधना शर्मा ने कहा कि संस्कृत, संस्कृति और संस्कार भारत को भूषित करते हैं। उन्होंने कहा कि एकता का मूल मन्त्र है संस्कृत। समस्त प्राचीन ज्ञान विज्ञान संस्कृत में रचा गया है। स्मपूर्ति सत्र में स्वागतभाषण कार्यक्रम के संयोजक मारवाडी महाविद्यालय के संस्कृतविभागाध्यक्ष डा. विकास सिंह के द्वारा तथा धन्यवाद ज्ञापन मारवाडी महाविद्यालय के भौतिकी विभागाध्यक्ष डा. अमित कुमार सिंह ने किया।

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उद्घाटन सत्र के बाद संगोष्ठी में तीन तकनीकी सत्र थे जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों के लगभग 120 प्रतिभागी महाविद्यालय में तथा 100 से अधिक ऑनलाइन मोड से सम्मिलित हुए थे। संगोष्ठी में कुल 80 शोध पत्रों का वाचन हुआ। तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता मारवाड़ी महाविद्यालय से डा विकास सिंह, नव नालंदा महाविहार से डा राजेश कुमार मिश्र एवं राजस्थान भरतपुर से प्रो. राजाराम ने की; साथ ही संयोजन मारवाड़ी महाविद्यालय से डा अनुरुद्ध सिंह, पटना विश्वविद्यालय से डा हरीश दास एवं कुशीनगर से डा विशंभर नाथ प्रजापति ने किया।

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