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August 1, 2019

संस्कृत हमारी अस्मिता एवं संस्कृति का मूल आधार: कुलपति

दरभंगा कार्यालय:संस्कृत हमारी अस्मिता एवं संस्कृति का मूल आधार है। इसके मार्फत हम पुनः गौरवशाली अस्मिता को पा सकते हैं। संस्कृत के कारण ही पहले भारत विश्व गुरु था। संस्कृत के माध्यम से ही हम भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान को जान सकते हैं।संस्कृत को देवभाषा तथा आदिभाषा कहा जाता है।पहले यह हमारी मातृभाषा भी थी। आज कुछ कारणों से युवाओं का रुझान संस्कृत की ओर कम हुआ है।उक्त बातें विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एस के सिंह ने विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग तथा लोक भाषा प्रचार समिति की बिहारशाखा के संयुक्त तत्त्वावधान में संस्कृत विभाग के सभागार में आयोजित 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर का दीप प्रज्वलित कर उद्घाटन करते हुए कहा।उन्होंने कहा कि आज जरूरत है कि हम समयानुसार संस्कृत को लोकप्रिय बनाकर आमलोगों तक पहुंचाएं।संस्कृत दिवस को 10 दिनों तक मनाया जाना सराहनीय है।इसके लिए विश्वविद्यालय की ओर से संस्कृतविभाग को बधाई।
मुख्य अतिथि के रूप में दरभंगा चिकित्सा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ हर्ष नारायण झा ने कहा कि हमारी चिकित्सा पद्धति,ज्ञान- विज्ञान,संस्कृति,आचार- व्यवहार सभी प्राचीन काल से ही संस्कृत साहित्य में निहित हैं।संस्कृत भारत की आत्मा है।स्वयं को,ईश्वर को तथा इह लोक व परलोग को जानने के लिए संस्कृत का ज्ञान परम आवश्यक है।संस्कृत ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान है।शब्द ही ब्रह्म है।संस्कृत के सभी शब्द मंत्र सदृश्य हैं।आज विज्ञान भी संस्कृत ज्ञान को पक्का मानता है तथा उसके बल पर आगे बढ़ता है।संस्कृत की महत्ता कम होना हमारे लिए दुःखद है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में कुलसचिव निशीथ कुमार राय ने कहा कि इस शिविर का उद्देश्य छात्रों को सरल संस्कृत में बातचीत सिखाना है।इससे संस्कृत भाषा- साहित्य का प्रचार-प्रसार भी होगा।संस्कृत भारत की प्राचीन भाषा है।इसमें समाजोपयोगी ज्ञान विज्ञान विद्यमान हैं,जो हमारे उच्च मानवीय मूल्यों को व्यक्त करते हैं।
मुख्य वक्ता के रूप में संस्कृत विश्वविद्यालय के अवकाश प्राप्त प्राध्यापक डॉ शशिनाथ झा ने कहा कि यह लोगों का भ्रम है कि संस्कृत कठिन है। भारत की एकता के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है। संस्कृत में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है।
अध्यक्षीय संबोधन में विभागाध्यक्ष डॉ नीरजा मिश्रा ने संस्कृत की महत्ता का विस्तार से चर्चा करते हुए इस शिविर में भाग लेकर छात्रों को अधिक से अधिक लाभ उठाने का आह्वान किया।
इस अवसर पर शिविर प्रशिक्षक अंशु कुमारी ने सरल संस्कृत बोलने का अभ्यास कराते हुए अपने विचार व्यक्त किया। प्रसिद्ध गायक पारस ने श्रावण गीत गाकर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी।वहीं वेद ध्वनि डॉ सोमेश्वरनाथ झा दधीचि ने प्रस्तुत किया।
उद्घाटन सत्र में डॉ देव नारायण यादव,प्रोफ़ेसर मनोज कुमार झा,प्रोफेसर मुनेश्वर यादव,डॉ आर एन चौरसिया,डॉ योगेंद्र महतो,डॉ विनय कुमार झा,डॉ चौधरी हेमचंद्र राय,चंदना कुमारी,डॉ मुकेश कुमार,प्रोफेसर अरुणिमा सिन्हा,प्रोफेसर अनिल कुमार झा,डॉ प्रतिभा गुप्ता,कुमारी पूनम राय,प्रो हिमांशु शेखर,डा विनोदानंद झा,डॉ सरदार अरविंद सिंह तथा उर्दू विभागाध्यक्ष सहित एक सौ से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।आगत अतिथियों का स्वागत पाग, चादर तथा पुष्पगुच्छ से किया गया।
आगत अतिथियों का स्वागत पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रामनाथ सिंह ने किया। विभागीय प्राध्यापक डॉ जयशंकर झा के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष कृष्णचंद्र सिंह ने किया।

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